ग़ज़ल
दीदार क्या हुआ तेरा धड़कन मचल गई
कितना सम्हाला लेकिन नज़र फिसल गई।
कुछ इस तरह आपका अंदाज ए बयां है
हम आशिकी से दूर थे नियत बदल गई।
चाहत रही न दिल को नजारा कोई मिले
दीदार ए यार से मेरी तबियत बहल गई।
क्या होगा आपने अगर दामन छुड़ा लिया
ये सोच कर हमारी धड़कन दहल गई।
हाथ आपका मेरे हाथों में आ गया जब
आह मेरे दिल की मेरे दिल से निकल गई।
बिखरे थे जैसे कांच के टुकड़े हों फर्श पर
तुमने मुस्कुरा के देखा जानिब सम्हल गई।
— पावनी जानिब, सीतापुर