कविता

एक नज़्म…

 (दिनांक २० मार्च को मुम्बई से लौटते समय मनमाड स्टेशन के प्लेटफार्म पर मैंने देखा कि आगे-आगे एक लड़का ,उसके कन्धे पर हाथ रखे,  पीछे उसकीअन्धी माँ और उनके कन्धे पर हाथ रक्खे सबसे पीछे लड़के का अन्धा पिता चले जा रहे हैं ; उनके चेहरों पर कोई विषाद नहीं है!
हमसब काफी कुछ पा जाने के बाद भी ईश्वर का धन्यवाद नहीं करते हैं,बल्कि जो नहीं मिल पाया उसके लिये दुखी होते हैं,भगवान को कोसते हैं। बस मेरे मन ख़ुदा का शुक्रिया अदा करने का विचार आया और इस नज़्म ने जन्म लिया)

जहाँ में शानो-शौकत,हर ख़ुशी को  किसने पाया है
ख़ुदा का शुक्रिया,हिस्से में सबकुछ अपने आया है

ठिठुरती ठंड में  तन पर नहीं  पहने  कोई  कपड़ा
कोई बिस्तर नहीं, कम्बल नहीं, बैठा हुआ अकड़ा
फटे आंचलसे ढंककर शीशुको ठंडक से बंचाती है
कलेज़े से है  चिपकाये, बड़ी  शिद्दत से  है जकड़ा
फ़क़त फुटपाथ को ही  उसने अपना घर बनाया है
ख़ुदा का शुक्रिया…..

हज़ारों लोग  भूखे-पेट  ही  हर रोज़  सोते हैं
महज़ रोटी के कुछ टुकड़ों के वो सपने संजोते हैं
लगा देते हैं  तन भी दांव पर  वो पेट की ख़ातिर
मगर थोड़ा भी उनके हाल पर हम नम न होते हैं
रँगीली  दावतों में  अन्न-धन  हमने लुटाया  है
ख़ुदा का शुक्रिया……                

वो देखो  सामने  शायद  कोई   मज़लूम  आता  है
है अच्छी शक्ल परवो इक क़दम भी चल न पाता है
ये क्या, उसके तो  दोनों पाँव भी  लगते  नदारद हैं
मगर  ऐसी भी  हालत में   वो देखो   मुस्कुराता है
ख़ुदा के इस करम को भी ख़ुशी से सिर चढ़ाया है
ख़ुदा का शुक्रिया….

हंसी  कुदरत का  चारों ओर  ये  रंगीं  नज़ारा है
ये पर्वत और झरने, बाग़, ये नदिया की  धारा है

ख़ुदा ने छीन ली आँखों से जिसकी रौशनी वो भी
बनाता ‘भान’ मन की  आँख को  अपना सहारा है
वो मन की शक्ति ही थी,’सूर’को जिसने  बनाया है
ख़ुदा का शुक्रिया……

          उदयभान पाण्डेय ‘भान’
२०-२१ ‘ मार्च ,२०१५
(पुष्पक एक्सप्रेस ट्रेन में सफ़र के दौरान)

उदय भान पाण्डेय

मुख्य अभियंता (से.नि.) उप्र पावर का० मूल निवासी: जनपद-आज़मगढ़ ,उ०प्र० संप्रति: विरामखण्ड, गोमतीनगर में प्रवास शिक्षा: बी.एस.सी.(इंजि.),१९७०, बीएचयू अभिरुचि:संगीत, गीत-ग़ज़ल लेखन, अनेक साहित्यिक, सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव