ग़ज़ल
उसका हर अंदाज जमाने वाला है।
मुझको सबसे गैर बताने वाला है॥
लोगों की नजरों में मुफ़लिस बनता है,
घर में देखा शख्स खजाने वाला है।
उससे साँस उधारी हरगिज मत लेना,
जो तुमसे अहसान जताने वाला है।
बेमौसम बारिश-ओला गिरने लगते,
लगता घर गल्ला ना आने वाला है।
आस लगाए बैठा है होरी कब से,
खाते में काला धन आने वाला है।
इंसान उगाते जो पत्थर खेतों में,
कल ख्वाबोँ में पेड़ लगाने वाला है।
‘पूतू’ जिंदा रहने का क्या मकसद है?
टूटा-फूटा साज बजाने वाला है।
— पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’
बहुत अच्छी ग़ज़ल. आपमें बहुत संभावनाएं हैं.