अनुपस्थिति
तटीय उड़ीसा के एक छोटे से मछुआरों के गाँव में आज बीस दिन बाद स्कूल खुला था जिसे सुनामी के कारण बंद कर दिया गया था । तमाम बच्चे हाथों मे स्लेट और तखती लटकाये स्कूल में चले आ रहे थे। कुछ चहक रहे थे और कुछ गुमसुम।
मास्टरनी ने आ कर अटेन्डेन्स रजिस्टर खोला और बच्चों की उपस्थिति दर्ज करने लगी। बच्चे अपना नाम पुकारे जाने पर ‘जी मैडम’ बोल रहे थे पर कई नाम हवा में तैरते रह गये। दो तीन बार पुकारे जाने पर भी उन नामों को किसी ने नहीं पहचाना । मास्टरनी ने खीज कर रजिस्टर बंद कर दिया ।
“आज इतने सारे बच्चे अनुपस्थित क्यों हैं?” उसने प्रश्न किया पर बच्चे क्या बताते । मैडम के प्रश्न का उत्तर तो उनके बहते हुए आँसुओं में ही मिल सकता था ।
जैसा एहसास जगा, लिख दिया । धन्यवाद ।
बहुत कारुणिक लघुकथा. सुनामी की जगह भूकंप होता तो भी कोई अंतर नहीं पड़ता. सभी त्रासदी ऐसी ही होती हैं. सबकी पीड़ा समान होती है.
लघु कथा में करुणा ही भरी है , बच्चे विचारे किया बोलते ,कि जो उन की आँखों के सामने हुआ था , मास्टरनी समझ ही नहीं रही थी .