एक कदम …..खुद के लिए
दिलो दिमाग के खोल किवाड़
सुनो तो ईश्वर की आह
कभी सूखा कभी बाड़
कभी भूकंप कभी महामारी
कभी सोनामी कभी शिव नगरी त्रासदी
क्या कहती हैं ये हमसे आते जाती
हर तबाही ……….
तड़प उठी है रूह ईश्वर की
देख हाल दुनिया का
जहाँ पाप , छल , लालच , कपट , द्वेष
का हुआ राज
हारी मानवता , संवेदना ,प्रेम ,विश्वास ,
एहसास और ज़ज्बात
इसलिए बार – बार कुदरत का हर कहर
करता है आगाह आत्ममंथन को
जगाने को अलख प्रीत प्यार से
मानवता के संचार की
जब साफ़ होगा मन पवित्र होंगे संस्कार
महके की आस्था की अलख
तभी हो पायेगा एक नव जीवन का सृजन
और उपचार इन आपदाओं और त्रासदियों से
तो आओ बढाएं एक कदम
मांझ ले ज़मीर , टटोल लें मन
खुद के लिए
मानवता के लिए
संसार के लिए
फिर शायद ईश्वर रूपी प्रकृति
भी दे दे अपना प्यार दुलार
और पवित्र आस्था के शंख से
महक उठे रूह ईश्वर की
तो एक कदम बढाएं
अपने से मानव सृजन के लिए
मानव सृजन के लिए…………
— मीनाक्षी सुकुमारन
बहुत अच्छी कविता. आपके मनोभाव प्रशंसनीय हैं.
कविता बहुत अच्छी लगी .कुदरत का जो कहर झेल रहे हैं , इस को समझ कर मानव को कपट छल छोड़ पियार से रहना चाहिए .
बहुत सुंदर सृजन… वाह वाह!