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एक योनिनिरपेक्ष निवेदन- हास्य

एक सच्चा मच्छर कभी डेंगू-चिकनगुनिया नहीं फैलाता बल्कि वो तो हमारा रक्त चूसकर स्वयं में घुलाते हुए हमसे निकटतम संबंध जोड़ने का सदप्रयास करता है लेकिन कुछ स्वार्थी तत्व उसे “काटने” का नाम दे देते हैं। तनिक ध्यान से सुनिए, वो भन्न-भन्न कितनी मधुर लगती है कानों के पास। “सोओ मत, उठो और कर्म करो” ये संदेश दिया जाता है उसमें। डंकोष्ठ की मीठी छुअन एक तेज सनसनाहट, चुनचुनाहट का अनुभव कराती है और हमारे नाखूनों को व्यायाम का अवसर मिलता है। उसी डंकोष्ठ की कृपा से कितनीबार तो चिहुँक अनायास ही खुद को थप्पड़ लग जाता है। जिससे हमें हमारी कई अनभिज्ञता में की गई भूलों के दंड अपनेआप ही प्राप्त हो जाते और पाप कट जाते हैं। कभी अपनी मच्छरदानी के अंदर से बाहर देखिए। कितने कातर भाव से ये मच्छर बाँहें फैलाये उसपर बैठ हमको तकते रहते हैं कि काश, एक अवसर मिले और हम उड़कर अपने मानव भाइयों से चिपक सकें।

सारा दोष उस दुष्ट परजीवी विषाणु का होता जो उस निरीह, शांतिप्रिय जीव के शरीर में प्रवेशकर बीमारियों को जन्म देता है और मानव-मच्छर के आपसी सदभाव को हानि पहुँचाता है। रही बात मीडिया के दुष्प्रचार की तो इतना स्पष्ट है कि कई बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने व्यावसायिक लाभ के लिए ये सब करा रही हैं जिससे उनके लिक्विडेटर, क्वाइल, क्रीम, विद्युतीय यंत्र आदि बिक सकें अतः इस पूरे परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए हमारा परम-पुनीत कर्तव्य है कि हमसब किसी प्रकार से भी न छले जाते हुए अपने-अपने घरों में यत्र-तत्र पानी जमाकर रखें जिससे हमारे ये नन्हें भाई आराम से पनपकर जीवमात्र से प्रेम करने की हमारी पुरातन मान्यता को सार्वभौमिक करते रहें।

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

One thought on “एक योनिनिरपेक्ष निवेदन- हास्य

  • विजय कुमार सिंघल

    बेहतरीन हास्य !

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