कविता : फिर जल गया रावण
फिर जल गया है रावण
हर बार की तरह
फूटते पटाखों के शोर
और तालियों की
गड़गड़ाहट के बीच l
बहन के अपमान का
प्रतिशोध लेने को
जो कर बैठा दुसाहस
माता सीता के हरण का
मगर मर्यादित रहा
फिर भी
कायम रह पाई थी
वैदेही की पवित्रता l
लेकिन क्या सच में
इतना क्रूर था वह
जितने निर्मम
और विकृत मानसिकता
के गुलाम हैं ये
कलयुगी रावण l
मासूम बच्चियों को नोचते
तो कभी निर्दोष और अबोध
बचपन को
पेट्रोल छिड़ककर
आग लगा देने वाले
आततायी
या फिर मनुष्य रूप में
भूलवश जन्मे पशु ?
उदंड और अभिमानी
उस रावण का
अंत तो हो गया था
बहुत पहले
दंड स्वरुप
मगर कब अवतरित होंगे
इन कलयुगी रावणों को
संहारने वाले राम ?
– मनोज चौहान
(अक्टूबर 2015 को दिल्ली में हुए मासूम बच्चियों के रेप और हरियाणा के फरीदाबाद में बच्चों को जला देने की घटना से आहत होकर दशहरे के पर्व पर 22.10.2015 को लिखी गई रचना)
मनोज जी , आप की कविता में एक दर्द छिपा है , अब तो उस रावण को भूल जाना चाहिए किओंकि उस ने तो अपनी बहन के अपमान का बदला लिया था ,लेकिन यह मॉडर्न एज के रावण किस का बदला ले रहे हैं ? कविता बहुत अच्छी लगी .
बहुत -2 धन्यवाद सर …हौसला अफजाई के लिए …!