गज़ल
खामोश अकसर जब भी मैं रहता हूँ।
तुम समझते हो मैं चुप ही रहता हूँ।
हर बार शब्दों का शौर नहीं मुनासिब
इसलिए कभी आँखों से ही कहता हूँ।
ख्वाबों की मलकियत है यूं मेरे पास
हकीकत में माना कि तन्हां भी रहता हूँ।
तुम न समझे तो कौन अब समझेगा
मैं अपना तुम्हें बस तुम्हें ही समझता हूँ।।।
कामनी गुप्ता ***
ठीक है !
धन्यवाद सर जी