ग़ज़ल
जिसका सूरज तू हो ऐसी सहर की क्या बात है,
साथ तेरे गुज़रे जो उस सफर की क्या बात है
जीता है अपने लिए हर कोई इस संसार में,
गैर की खातिर जिए उस शख्स की क्या बात है
मैं था तुम थे दरमियाँ थीं बोलती खामोशियाँ,
एक पल के उस दीदार-ए-यार की क्या बात है
देखकर अनदेखा जिसने कर दिया मुझको सदा,
जानकर अनजान उस बेखबर की क्या बात है
रंगता रहता हूँ अक्सर यूँ तो मैं कागज़ मगर,
तेरे दिल को जो छुए उस शेर की क्या बात है
— भरत मल्होत्रा
जीता है अपने लिए हर कोई इस संसार में,
गैर की खातिर जिए उस शख्स की क्या बात है. वाह क्या बात है ,ग़ज़ल अच्छी लगी .