गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : चार दिन की है….

ये बचपन चार दिन का है जवानी चार दिन की है.
सही पूछो तो पूरी ज़िंदगानी चार दिन की है.

वो दौलत और ताक़त के नशे में इस तरह डूबा,
भुला बैठा है वो ये भी निशानी चार दिन की है.

नई जो चीज लाया हूँ पुरानी कह रहे हो तुम,
पुरानी मत कहो वो बस पुरानी चार दिन की है.

वे बोले-कल भी थी है आज भी कल भी रहेगी ये
न समझो दुश्मनी ये खानदानी चार दिन की है.

हमें माँ ने सुनाई थी वो बच्चों को सुनाते हम,
कभी होती न बचपन की कहानी चार दिन की है.

डाॅ.कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674

3 thoughts on “ग़ज़ल : चार दिन की है….

  • ये बचपन चार दिन का है जवानी चार दिन की है.

    सही पूछो तो पूरी ज़िंदगानी चार दिन की है. बस इस में सब कुछ आ गिया .

  • रमा वर्मा

    वाह्ह … बहुत सुंदर..

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