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अध्यात्म ही धर्म है जिससे युवा व सभी को प्रसन्नता प्राप्त होती हैः आचार्य धनंजय आर्य

ओ३म्

वैदिक साधन आश्रम तपोवन में युवा अध्यात्म विषयक युवा सम्मेलन सम्पन्न-

वैदिक साधान आश्रम तपोवन के दूसरे दिन का कार्यक्रम आज प्रातः 5.00 बजे से 6.00 बजे तक स्वामी दिव्यानन्द जी के प्रशिक्षण में हुआ। उसके पश्चात 6.30 से 9.00 बजे अथर्ववेद आंशिक पारायण यज्ञ हुआ। जिसके अ  नन्तर स्वामी दिव्यानन्द जी ने अर्थववेद के मन्त्रों के अर्थों पर आधारित उपदेश किया। स्वामी जी ने कहा कि गृहस्थ जीवन मे स्वाध्याय व भक्ति आदि की जो कमियां रहती है उन्हें वानप्रस्थ में दूर किया जाता है। यदि गृहस्थी व वानप्रस्थी का भक्ति में प्रवेश होता है तो उन्हें संन्यास लेने की आवश्यकता नहीं होती। उन्होंने प्रभु आश्रित जी का उदाहरण देकर बताया कि वह मृत्युपर्यन्त वानप्रस्थी ही बने रहे तथा उन्होंने संन्यास नहीं लिया। उन्होंने दोहराया कि यदि भक्ति में रूचि बन जाये तो संन्यास लेने की आवश्यकता नहीं है। स्वामी जी ने यह भी कहा कि वानप्रस्थ और संन्यास की दीक्षा लेने से जीवन सफल होता है। स्वामी जी ने प्रेरणा कि दीक्षा के माध्यम से अपने जीवनों का सुधार करें और जीवन को उत्कर्ष की ओर ले जायें। बड़ी उम्र के व्यक्तियों को चाहिये कि वह घर पर रहकर समाज के सुधार का कार्य करें व बच्चों को पढ़ायें।

आज 10.00 बजे से आचार्य आशीष दर्शनाचार्य के संचालन तथा कलकत्ता के व्यवसायी व आर्य विद्वान श्री दीनदयाल गुप्ता जी की अध्यक्षता में युवा सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसका विषय था ‘‘युवा और अध्यात्म।” आशीष जी ने कहा कि युवा और अध्यात्म यह दोनों शब्द दूर दूर दिखाई देते हैं। आज के आयोजन से हम जान पायेंगे कि युवा और अध्यात्म का परस्पर चिर परिचित संबंध है। विषय कर पहली प्रस्तुति राजकीय इण्टर कालेज, नालापानी की छा़त्रा सुश्री सीमा ने दी। उन्होंने कहा कि आज के सम्मेलन का विषय रोचक एवं प्रभावशाली है। युवाओं के मन का एकाग्र होना वर्तमान परिस्थितयों में कठिन कार्य है। उन्होंने कहा कि अध्यात्म को किसी भी धर्म से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिये। वक्ता की इस बात का बाद के एक विद्वान ने प्रतिवाद किया। सुश्री सीमा ने कहा कि हमारे अन्दर अनन्त क्षमतायें हैं। हमारे युवा विश्व के स्वरुप को बदल सकते हैं। उन्होंने कहा कि अध्यात्म देश की सीमाओं से परे है और अनन्त है। अध्यात्म हमें यह समझने पर मजबूर कर देता है कि मैं कौन हूं और मैं इस संसार में क्यों आया हूं। समीक्षक व संचालक श्री आशीष आर्य ने इस प्रस्तुति को अच्छा बताया और कहा कि हमारा प्रयास युवाओं मे वक्तृत्व कला का विकास करना है। देश के सभी बच्चों के अन्दर यह क्षमता होना जरूरी है। इसके बाद तपोवन विद्या निकेतन के कक्षा 6 के छात्र वैभव रावत ने धारा प्रवाह, विषय के अनुरुप, बिना रूके व अटके सारगर्भित व प्रभावशाली वक्तव्य दिया जो अत्यन्त सराहनीय था। उन्होंने कहा कि अध्यात्म का अर्थ जानना आवश्यक है। परमात्मा की उपासना करने को उन्होंने अध्यात्म बताया। युवा जीवन अनेक कर्तव्यों से भरा हुआ है। अध्यात्म को जीवन का सार कहा जा सकता है। अध्यात्म से जुडने का सही समय उन्होंने युवावस्था को बताया। युवाओं को योग में रूचि लेनी चाहिये। उन्होंने कहा कि जब युवा अध्यात्म से सम्पन्न हो जायेंगे तो उनकी समस्त बुराईयां दूर हो जायेंगी।

अखिल भारतीय महिला आश्रम की कक्षा 8 कि छात्ऱा ऋतु ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि हमें सत्य पर चलना चाहिये। हमारे सभी महापुरूष भी जीवन में सत्य पर ही चले थे। इसके बाद तपोवन विद्या निकेतन की 7 छात्राओं ने वेदों की झंकार’ विषयक एक सामूहित गीत प्रस्तुत किया जिसके बोल थे वेदों की झंकार लिये जब आया वो योगी प्यारा, झूम उठा आलम सारा’।  युवा सम्मेलन के मध्य में संचालन कर रहे विश्व ख्याति के विद्वान आचार्य आशीष जी ने युवाओं से प्रश्न किया कि वेद किसके द्वारा, कब उत्पन्न हुए। वेदों का ज्ञान किस किस ़ऋषि को प्राप्त हुआ और उन वेदों के नाम क्या हैं। इस प्रश्न के उत्तर में अनेक विद्यालीय बच्चे आरम्भ में सही व पूरा उत्तर न दे सके। छात्रा अपराजिता, युवक आदित्य तथा नेहा ने अपूर्ण वा अशुद्ध उत्तर दिये। इसके बाद आचार्य आशीष जी ने सही उत्तर बताये और सभी बच्चों से इसका अभ्यास भी जोर जोर से बोल कर अपने साथ साथ बुलवाकर कराया। पुनः बच्चों से उत्तर पूछे गये परन्तु फिर भी बच्चे उत्तर में अटक रहे थे और क्रम भी ठीक नहीं था। अन्त में डी.ए.वी. पी.जी. की एक छात्रा ने सही व पूर्ण उत्तर दिया। उसके बाद आशीष जी ने फिर बताया कि वेदों का ज्ञान सर्वव्यापक ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अर्थववेद के द्वारा दिया। इन चार ऋषियों ने वेद बनाये व रचे नहीं अपितु इन्हें इनकी आत्मा में ईश्वर ने प्रेरणा के द्वारा स्थापित किया था। इसके बाद पुनः सम्मेलन के विषय पर एक छात्रा सुषमा रावत द्वारा विचार प्रस्तुत करते हुए कहा गया कि आज युवको में अध्यात्म की गहरी आवश्यकता है। आज की पीढ़ी में अध्यात्म व चेतन तत्व आत्मा के ज्ञान का अभाव है। उन्होंने कहा कि अध्यात्म का अर्थ अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना है। अध्यात्म जीवन को सर्वोच्च व सर्वोत्तम बनाने का साधन है। उन्होंने केवल आसन व प्राणायाम को ही योग मानने की आलोचना की और कहा कि योग के अन्य अंगों को भी महत्व दिया जाना चाहिये। तपोवन विद्या निकेतन के कक्षा 6 के छात्र सचिन टमटा ने कहा कि राष्ट्र की प्रगति युवा पीढ़ी पर निर्भर है। आज का युवा भटकाव की स्थिति से गुजर रहा है। इसका कारण युवाओं में आध्यात्मिकता का अभाव है।  अध्यात्म का अर्थ व उसका प्रयोजन संसार में सब कुछ ईश्वर का मानकर उसकी उपासना करना है। जीवन अमूल्य है तथा उसे अपने आचार व विचारों से सुन्दर बनाना चाहिये। यह प्रस्तुति बहुत सुन्दर व अच्छी थी।

राजकीय इन्टर कालेज के कक्षा 12 के छात्र श्री शिवा ने कहा कि सभी अच्छे लोग हमेशा खूबसूरत होते हैं शक्ल व सूरत का खूबसूरती से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि जो कोशिश करने पर भी हार जाता है वह वस्तुतः हारता नही है। आर्ष गुरुकुल पौंधा के ब्रह्मचारी नीरज शास्त्री ने कहा कि परमात्मा की भक्ति का विषय फूलों की शय्या है। उन्होंने कहा कि आजकल जो विज्ञान का अध्ययन करते हैं वह अन्य विषयों के ज्ञान से शून्य होते है जिससे उनका व्यक्तित्व पूर्णरूपेण विकसित नहीं होता। कार्यक्रम के संचालक श्री आशीष आर्य जी ने बच्चों से पूछा कि हवन क्यों करते हैं। एक बच्चे ने उत्तर दिया कि हवन वायु की शुद्धि और आत्मा की शान्ति के लिये किया जाता है। आशीष जी ने यह भी कहा गया कि वायु वा पर्यावरण सभी मतों वा धर्मों के लोगों द्वारा किया जाता है। अतः हवन वा अग्निहोत्र द्वारा वायु की शुद्धि करना भी सभी मतों व उनके अनुयायियों का कर्तव्य है। सभी लोगों से धर्म व मत की भावना से ऊपर उठकर यज्ञ करना चाहिये। हवन से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं और इससे अनेक उपयोगी गैसें भी मिलती हैं। गुरुकुल पौंधा के ब्रह्मचारी शुभम् ने एक गीत प्रस्तुत किया जिसके बोल थे लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जायेगा। तेरे चरणों में बैठे, जो होगा देखा जायेगा।’ इसके बाद गुरुकुल के आचार्य डा. धनंजय जी का उपदेश हुआ।

आचार्य धनंजय जी ने कहा कि कुछ नया करने की चाह रखने वाले को युवा कहते हैं। अपने आत्म ज्ञान के बढ़ाना अध्यात्म है। आत्मा इस शरीर में रहता है। उन्होंने अधि व आत्मा शब्दों का अर्थ करते हुए बताया कि जो आत्मा को आगे व प्रथम रखता है वह अध्यात्मज्ञ होता है। विद्वान वक्ता ने कहा कि परमपिता परमात्मा से संबंध बनाने वालों को आध्यात्मिक कहते हैं। उन्होंने कहा कि अध्यात्म ही धर्म है जिससे हमें प्रसन्नता प्राप्त होती है। आत्मा में प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला परमपिता परमात्मा है। युवा क्यों भटक रहा है? युवा को अध्यात्म की आवश्यकता क्यों है, आदि प्रश्नों को प्रस्तुत कर विद्वान वक्ता ने इन पर विचार किया। उन्होंने कहा कि शरीर में शक्ति होने तक ही युवा कुछ कर सकता है। अध्यात्म के होने से युवाओं में शक्ति बनी रहती है। हम जिसका संकल्प करते हैं उसे प्राप्त कर लेते हैं। कार्यों को सिद्ध करने की यह शक्ति तब तक रहती है जब तक की आत्मा प्रसन्न रहती है। यदि हमारी आत्मा प्रसन्न न हो तो हम कठिन कार्य भली प्रकार से नहीं कर सकते। हमारी आत्मा हमेशा प्रसन्न रहे इसके लिए हमें अध्यात्म से जुड़ना है। इच्छित वस्तु को प्राप्त करने के लए मन को संकल्पित करना जरुरी है। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द ने सन् 1875 को मुम्बई में ईश्वर को जानने व अध्यात्म को मजबूत करने के लिए आर्यसमाज की स्थापना की। महर्षि दयानन्द का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि उन्होंने 14 वर्ष की अवस्था में ही दुःख व उसके कारणों को समझ कर उसका निदान करने के लिए प्रयत्न आरम्भ कर दिये थे। विद्वान वक्ता ने कहा कि युवा वह होता है जो अपनी शक्ति से समाज में कुछ नया कार्य व प्रयत्न करता है। वह तभी कर सकता है जब उसे धर्म और अध्यात्म का सत्य स्वरूप पता हो और वह उसका आचरण करे। परमात्मा की निकटता से आत्मा बलवान होती है और इससे हम आनन्दित होते हैं। उन्होंने कहा कि जो महापुरुष अध्यात्म से रहित थे वह कुछ काल बाद फिसल कर नीचे आ गये। हम जो अच्छी बाते सुनते व सीखते हैं उसे हमें अपने आचरण में लाना चाहिये। आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने से हमें सुख व शान्ति सहित सफलता अवश्य मिलेगी।

वक्ता के अपने वक्तव्य को विराम देने के बाद श्री आशीष जी ने टिप्पणी की कि अध्यात्म को समझना आवश्यक है। पढ़ाई करते समय मन बार बार भटक जाता है। मन को भटकने से रोकने का हल वर्तमान समय में आधुनिक शिक्षा व इसके किसी पाठ्यक्रम में नहीं है। इसका हल अध्यात्म में है। अध्यात्मिक जीवन वह पद्धति है जो स्वयं पर नियंत्रण करने के साथ अपने अन्दर होने वाली होने वाली परेशानियों से हमें बाहर निकालती है। श्री आशीष दर्शनाचार्य जी ने कहा कि यदि किसी युवक का किसी अन्य से तुलना की जाती है तो उसे बुरा लगता है। इससे वह टूट सकता है। यह टूट जाने का स्वभाव आप सबसे संबंधित है। इसका हल मिलेगा अपने से संबंधित ज्ञान अर्थात अध्यात्म से। चिन्ताओं से दूर होने के विज्ञान को ही अध्यात्म कहते हैं। उन्होंने कहा कि यदि युवा अशान्त है, परेशान है और क्रोध से भरा है तो ऐसा युवक समाज में यही चीजें बाटेंगा। इसलिए युवाओं का अध्यात्म से जुड़ना जरुरी है। आशीष जी ने कहा कि अध्यात्म वह है जो हमें अपने अन्दर की परेशानियों से बाहर निकालता है। युवा सम्मेलन में श्री अजय कुमार, कु. लक्ष्मी, निधि बी.एस-सी. छात्रा, चारू कक्षा 7 आदि ने भी अपनी अपनी सुन्दर व ज्ञानवर्धक प्रस्तुतियां कीं। इस अवसर भारत के राष्ट्रपति की ओर से दो बार पुरस्कृत श्री कृष्ण कुमार भाटिया ने भी बच्चों व श्रोताओं को सम्बोधित किया। इनके बाद आर्यसमाज के विद्वान श्री पीयूष शास्त्री ने अपने सम्बोधन मे कहा कि महर्षि दयानन्द में इतिहास में हुए सभी ऋषि मुनियों व महापुरूषों आदि के सभी श्रेष्ठ गुण विद्यमान थे। उन्होंने बच्चों की दीपक की उपमा दी और कहा कि वह देश के सभी युवाओं को प्रज्जवलित कर सकते हैं। आर्यजगत के वयोवृद्ध गीतकार गायक व लेखक पंडित सत्यपाल पथिक जी का एक स्वरचित भजन हुआ जिसके बोल थे सुनते जाना सुनते जाना देश प्रेम का गाना, सुनते जाना। एक पहेली तुमसे पूंछे समझ सोच बतलाना, सुनते जाना।’ इस भजन में पहले के द्वारा भारत के अनेक महापुरूषों के नाम पूंछे गये थे। बच्चों व मंचस्थ विद्वान उनके उत्तर दे रहे थे।

डी.ए.वी. पी.जी. कालेज, देहरादून की संस्कृत विभाग की अध्यक्षा श्रीमती सुखदा सोलंकी ने अपने सम्बोधन में सत्व, रज व तम तीन गुणों वाले युवा व मनुष्यों की चर्चा की। उन्होने उदाहरण देकर बताया कि आजकर के युवा व बच्चे एक दूसरे को गाली देकर आपस में मिलते हैं। उन्होंने कहा कि यह आजकल नैनो टैक्नोलोजी की आधुनिक सोच व व्यवहार का परिणाम है। विदुषी वक्ता ने शहीद भगत सिंह जी का अपनी मां से फांसी से पूर्व हुआ करूणादायक संवाद भी प्रस्तुत किया और बताया कि भगतसिंह जी ने कहा था कि मैं अपना मुंह खोलकर फांसी पर चढूगां। विदुषी वक्ता ने जनक व कुछ विद्वानों के अध्यात्म पर हुए विचारों के आदान प्रदान की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि महाराज जनक ने ऋषियों को बताया था कि वह सभी कार्य करते हुए भी स्वयं को ईश्वर से जोड़े रखते हैं। सम्मेलन के अध्यक्ष श्री दीनदयाल गुप्ता ने कहा कि सम्मेलन में छात्र व छात्राओं ने बहुत अच्छी प्रस्तुतियां की हैं। उन्होंने सबको बधाई दी। उन्होंने कहा कि जिन व्यक्तियों में काम करने की क्षमता व लगन है वह युवा हैं। मनुष्य में क्षमता व लगन तब आती है जब वह अध्यात्म से जुड़ता है। तभी यह गुण फलीभूत भी होते हैं। अध्यक्ष जी ने महर्षि दयानन्द के जीवन के अनेक कार्यों का वर्णन भी किया। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानन्द जी ने देश पर बहुत उपकार किये हैं। धर्म व संस्कृति के विचारों को युवाओं में भरने के लिए उन्होंने आचार्य आशीष जी के कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने सुने गये विचारों को जीवन में धारण करने की प्रेरणा की।

आचार्य आशीष जी ने सम्मेलन का समापन किया। शान्ति पाठ के साथ सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। रात्रि सभा में भजनों व गीतों की प्रस्तुतियां हुइंर् जिसके बाद आचार्य आशीष जी का विद्वतापूर्ण प्रवचन हुआ। वर्तमान लेख व समाचार का अधिक विस्तार हो जाने के कारण इस प्रवचन को हम एक पृथक लेख में प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।

-मनमोहन कुमार आर्य

3 thoughts on “अध्यात्म ही धर्म है जिससे युवा व सभी को प्रसन्नता प्राप्त होती हैः आचार्य धनंजय आर्य

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, आपके साथ तपोवन के सत्संग में सम्मिलित होना सुखद लगा. अध्यात्म से हमारे अन्दर समाहित अनन्त क्षमतायें प्रस्फुटित होती हैं. आचार्य धनंजय जी की युवा व अध्यात्म की परिभाषा सटीक लगी. अत्यंत सुखद व शांतिदायक आलेख के लिए आभार.

  • लीला तिवानी

    प्रिय मनमोहन भाई जी, आपके साथ तपोवन के सत्संग में सम्मिलित होना सुखद लगा. अध्यात्म से हमारे अन्दर समाहित अनन्त क्षमतायें प्रस्फुटित होती हैं. आचार्य धनंजय जी की युवा व अध्यात्म की परिभाषा सटीक लगी. अत्यंत सुखद व शांतिदायक आलेख के लिए आभार.

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बहिन जी। सादर।

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