कविता : टूटा तारा
देख टूटा तारा नभ से
माँगा था कोई अपना ही
पर उस टूटे तारे की तरह
टूटा था मेरा सपना भी !
कह देते अगर वक़्त रहते
अनकहीं-छुपी दिल की बातें
तो शायद किस्मत में होता
बेगाना हुआ वो अपना भी !
ऊपर वाला है लिखे नसीबा
बेगाने ख्वाब क्यों दिखलाये
बदल न पाये इन्सां तकदीरें
सपना रहे सदा सपना ही !
देख टूटा तारा नभ से
न माँगो कोई सपना ही
जब ख्वाब न पूरा हो पाए
दिल टूटेगा अपना ही !
— अंजु गुप्ता