सावन
छाई है घनघोर घटा फिर,
रिमझिम है बरसा सावन।
दादुर मोर पपीहा बोले,
अरु भीगा मेरा तन मन ।
जब बरसे सावन ओ साजन,
बीते पल तडपाते हैं।
नैन नीर होता है मेरे,
आंसू झरते जाते हैं ।
ऐसी भी क्या मजबूरी है,
मुझको भूले बैठे हो ?
खता हुई है ऐसी भी क्या,
जो तुम मुझसे ऐंठे हो ।
छमछम करती पायल मेरी,
खनखन करते हैं कंगन ।
बांध लिया है प्रियवर तुमसे,
प्यार भरा मैंने बंधन ।
सावन बरसे नैना तरसे,
पिया मिलन की आस लिये ।
आज लौटकर आओ प्रियतम,
निज मन मे एहसास लिये ।
बादल गाते प्रेम गीत जब,
धरती से नभ मिलता है।
विरह सहन करता अंतस
मानो वेवस हो जलता है।
अनुपमा दीक्षित मयंक