गीत : धन्य धन्य भारत के फौजी
(काश्मीर में भारतीय सेना और सुरक्षाबलों की शानदार कार्यवाही पर विश्वास और फक्र दिखाती मेरी नई कविता)
धन्य धन्य भारत के फौजी, धन्य तुम्हारी छाती है
देख तुम्हारे भुजदंडों को, महबूबा शर्माती है
बहुत सही थी बंदर घुड़की, इन आतंकी झुंडों की
झेली हमने बहुत अभी तक, पत्थरबाजी गुंडों की
खुले आम भारत से नफरत, गद्दारी का साया है
खुली बगावत के नारे हैं, संविधान घबराया है
बुद्धिजीवियों का समूह, किस बिल में आज समाया है
अब तक नही किसी ने कोई पुरस्कार लौटाया है
सिर्फ दादरी वाली इनको भीड़ लगी उन्मादी है
काश्मीर के हुड़दंगी पर अब तक चुप्पी साधी है
लेकिन भारत की सेना का मौन समय पे टूटा है
श्रीनगरी के लालचौक पर गाढ़ दिया अब खूंटा है
पिछवाड़े पे लट्ठ बजा है, फूट गया सब गल्ला है,
काश्मीर की सड़कों पर फौजी बूटों का हल्ला है
हर बटालियन पिल बैठी है, जाट मराठा सनके हैं
बंदूकों की नली खुली है, खड़े हुए अब तनके हैं
घुस घुस कर चुन चुन कर सबका बैंड बजाना जारी है
बिना टिकट सबको जन्नत की सैर कराना जारी है
“या अल्ला” का दर्द उठा है काश्मीर के दर्रों से
गद्दारों का जिस्म भर दिया पेलट गन के छर्रों से
दो डंडे पड़ते ही दिल में देशराग कर बैठे हैं
कुछ तो अपने पैजामों में मूत्रत्याग कर बैठे हैं
फंसे बाढ़ में जब थे, तब तो सेना से घिघियाये थे
उसी फ़ौज पे हमला करके बिलकुल न शरमाये थे
इसीलिये अब मोदी जी का प्लान पड़ा है भारी जी
है अजीत डोभाल सूरमा, कर ली है तैयारी जी
नहीं किसी अब द्रोही की आरती उतारी जायेगी
सीधे सीधे अब सीने में गोली मारी जायेगी
ह्यूमन राइट्स का विलाप जो होता है तो होने दो
कोई पत्रकार या नेता रोता है तो रोने दो
मोदी जी अब चैन अमन दो, काश्मीर की राहों को
एक साल के लिए सौंप दो काश्मीर सेनाओं को
— कवि गौरव चौहान
बहुत शानदार गीत !