राजनीति

ये कैसा शांति दूत?

डॉक्टर जाकिर नाईक फरमाते हैं कि वे शांति दूत हैं? कह देने से कोई शांति दूत हो जाता तो फिर क्या चाहिए? नहीं, कदापि नहीं, नाईक शांति दूत तो कतई नहीं है? शांति दूत के लिए बेहद जरूरी है–संवेदनशील होना, हर विपरीत विचार के प्रति खुला होना, दूसरों की मान्यताओं को सम्मान देना, किसी का मूल्यांकन नहीं करना, प्रत्येक की निजता का आदर करना…इन कसौटियों पर जरा सा भी नाईक को कसो तो पता चलता है कि यह व्यक्ति कट्टर है, अहंकारी है, अपनी मान्यता को लेकर पूरी तरह से अंधा है…ये कैसा शांति दूत?
अपने धर्म के अलावा हर धर्म की कुतर्कों से आलोचना करता है, निंदा करता है और तोड़-मरोड़कर अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताता है…इस तरह तो शांति स्थापित हो ही नहीं सकती…इस तरह से तो हर व्यक्ति अपनी मान्यता को बड़ा मानता है और उसी से सारी हिंसा और द्वेष आता है…जाकिर नाईक तो अपने कुतर्कों से लोगों को जड़ बना रहा है और जड़ता ही तो हिंसा का आधार होता है?
कह देने से जाकिर नाईक शांति दूत नहीं हो जाता…जिस तहर से खुले मंच से जाकिर नाईक हर धर्म को, हर विचार को, हर सोच को खंड़ित करता है, निंदित करता है यदि कोई उसकी मान्यता और धर्म की यूं आलोचना करे, निंदा करे तो ये बर्दाश्त कर लेंगे? तत्काल गला रेत देने के फरमान जारी हो जायेंगे…जब खुद के धर्म की संकीर्णता दिखाई नहीं देती तो दूसरे के धर्म की निंदा करने का अधिकार नाईक को कैसे मिल जाता है…ऐसा क्या कर दिया था तस्लीमा नसरीन, या रूश्दी ने? विचार ही तो थे…?
नहीं, मैं जाकिर नाईक को शांति दूत नहीं मानता…कट्टर है, जड़ है, कुतर्कों से भरा नासमझ है….इसी तरह की नासझियों से हिंसा आती है और आती रही है और आती रहेगी…कह देने मात्र से कोई शांति दूत नहीं होता…! अपना धर्म, मान्यता, सोच सर्वश्रेष्ठ, दूसरे से भी नकारा…यही तो जहरीला सोच है…जाकिर नाईक तो तर-बतर है इस सोच से?
संतोष  भारती 

संतोष भारती (बनवारी)

स्वतंत्र विचारक, लेखक एवं ब्लॉगर निवासी पुणे