गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : विश्व में आका हमारे

वे सुना है चाँद पर, बस्ती बसाना चाहते।
विश्व में आका हमारे, यश कमाना चाहते।

लात सीनों पर जनों के, रख चढ़े थे सीढ़ियाँ
पग तले अब सिर कुचल, आकाश पाना चाहते।

भर लिए गोदाम लेकिन, पेट भरता ही नहीं
दीन-दुखियों के निवाले, नोच खाना चाहते।

बाँटते वैसाखियाँ, जन-जन को पहले कर अपंग
दर्द देकर बेरहम, मरहम लगाना चाहते।

खूब दोहन कर निचोड़ा, उर्वरा भू को प्रथम
अब हलक की प्यास भी, शायद सुखाना चाहते।

शहरियत से बाँधकर, बँधुआ किये ग्रामीण जन
गाँव का अस्तित्व ही, जड़ से मिटाना चाहते।

सिर चढ़ी अंग्रेज़ियत, देशी भुला दीं बोलियाँ
बदनियत फिर से, गुलामी को बुलाना चाहते।

देश जाए या रसातल, या हो दुश्मन के अधीन
दे हवा आतंक को, कुर्सी बचाना चाहते।

कोशिशें नापाक उनकी खाक कर दें “कल्पना”
खाक में जो स्वत्व, जन-जन का मिलाना चाहते।

कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]

5 thoughts on “ग़ज़ल : विश्व में आका हमारे

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

    • कल्पना रामानी

      हार्दिक आभार…

  • अर्जुन सिंह नेगी

    सुन्दर भाव

    • कल्पना रामानी

      …हार्दिक आभार …

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