वाह रे लोग, वाह री संस्कृति…
चेहरे पे थे ख़ुशी के भाव
वो मंद-मंद मुस्कुरा रही थी
शायद !
किसी खास से बतिया रही थी ।
कानों में गूंजा
आज मेरा जन्मदिन है
आओगे नहीं, मुझे विश करने ।
उसके चेहरे की रंगत बता रही थी
भाव-भंगिमा यह जता रही थी
कि
उस खास ने शायद असमर्थता थी जतायी !
तभी तो
आंखों में आंसूओं की थी बूँद
जो अभी-अभी उभर आयी !
पूछ ही डाला मैंने उससे
जिनके चरण में जन्नत है बस्ती
आशीर्वाद से बनते हैं नामचीन हस्ती
लिया आशीर्वाद उनसे,
क्यूंकि
आप तो निकली होंगी घर से !
वो बगल झाकने लगी
इधर-उधर ताकने लगी ।
लगा
वाह रे लोग, वाह री संस्कृति !!