कविता
जन्म है जिनका यहाँ पर उनको रब के यहाँ तो जाना है।
अगर माता जी चली गई तो आत्मा को शांति दिलाना है।
सर पर जिनकी छाया रहती वो छाप छोड़ चली जाती है,
कैसे रहना है माता के ममता बिन दिल को समझाना है।
जीवन भर माँ के क्षत्र-छाया में सबको सीखना-सीखाना है…….॥१॥
माँ ने ही हमें अंगुली पकड़ कर चलना यहाँ सिखाती है।
अपने को भूखा रख-करके भोजन हाथों से हमें खिलाती है।
कोमल हाथों से थपकियां देकर लोरी के साथ सुलाती है,
यहाँ अब तो यादों को संजोकर हर – पल हमें बिताना है।
जीवन भर माँ के क्षत्र-छाया में सबको सीखना-सीखाना है…….॥२॥
माँ के बिन अपना जीवन सब सुना- सुना जैसा लगता है ।
ममता बिन हर- पल हर समय खोया खोया जैसा लगता है।
माँ रहती है जब साथ में तो हर खुशियाँ रहती झोली में,
कभी ऐसा समय आ जाता है माँ के बिन बिताना पड़ता है।
जीवन भर माँ के क्षत्र-छाया में हमको सीखना-सीखाना है…….॥३॥
_____________________रमेश कुमार सिंह /०६-०४-२०१६