गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कभी उसे रुलाकर, कभी हंसाकर जी लिए,
उसकी नादान शरारतें दिल से लगाकर जी लिए।

उसकी पलकों को लबों से चूमकर,
आँखों में इश्क़ सजाकर जी लिए।

शरारों के साथ खेलना किसे आता था,
मुहब्बत की आग लगाकर जी लिए।

पाबंदी बहुत थी दुनिया के रिवाजों की
कई तोड़कर, कुछ निभाकर जी लिए।

उसके आंसू तेरी पलकों पर ठहरे है ‘दवे’
ज़िंदगी भर वे अश्क़ संभाल कर जी लिए।

विनोद दवे

नाम = विनोदकुमारदवे परिचय = एक कविता संग्रह 'अच्छे दिनों के इंतज़ार में' सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत। विनोद कुमार दवे 206 बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम पोस्ट=भाटून्द तहसील =बाली जिला= पाली राजस्थान 306707 मोबाइल=9166280718 ईमेल = davevinod14@gmail.com