कविता

ब्रह्म ब्राह्मण

ब्रह्म को जानता जो, ब्राह्मण कहलाता था,
दीन- हीन बना रहा जो, शूद्र कहलाता था।
शिक्षा का प्रचार प्रसार, जिसका दायित्व रहा,
मनुष्यों में श्रेष्ठ नर ही, विप्र कहलाता था।
परिभाषायें बदल गई, वर्तमान दौर में,
जन्मना जाति से, मनुष्य जाना जाता है।
नर श्रेष्ठ खो गये, राजनीति के दौर में,
धन और शोहरत से, मूल्यांकन किया जाता है।
अ कीर्तिवर्धन