गज़ल
तनहाई में महफिल कभी महफिल में तनहाई,
चाहत तेरी हमें ये किस मुकाम पर ले आई,
उल्टा हुआ असर मेरी दुआओं का कुछ यूँ,
मरने की दुआ की थी पर जीने की सज़ा पाई,
ढाए जा तू शौक से सितम ऐ सितमगर,
बेआबरू हो इश्क जो तुझको कहूँ हरजाई,
सजदों में मैं झुकूँ या डूब जाऊँ जाम में,
हर जगह मुझे देता है बस तू ही तू दिखाई,
महसूस हो रहे हो तुम साँसों के दरमियाँ,
बाद-ए-सबा कहीं से तेरी खुश्बू चुरा लाई,
गुम हो गए होश-ओ-हवास तुमको देखकर,
लम्हों में लुट गई मेरी इक उम्र की कमाई,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।