रोता और रुलाता क्यूँ है
रोता और रुलाता क्यूँ है
आँसू रोज बहाता क्यूँ है
इतना दर्द दबाकर दिल में
महफिल में मुस्काता क्यूँ है
तुझ पर बंद करे जो दर को
उसके दर पर जाता क्यूँ है
तुझको छोड गया जो तन्हा
उसको यार बताता क्यूँ है
सब कुछ लूट लिया अपनो ने
अपनों से फिर नाता क्यूँ है
तुझको भूल गये जो तेरे
उनकी बात सुनाता क्यूँ है
बहरे हैं सब दुनिया वाले
फिर आवाज लगाता क्यूँ है
कडवी है सच्चाई फिर तू
सच की कविता गाता क्यूँ है
कुंभकरण से सोये हैं सब
तू बेकार जगाता क्यूँ है
सतीश बंसल
०१.०४.२०१७