“जनहरण घनाक्षरी”
“जनहरण घनाक्षरी”
फिर फिर अब तुम
तन मन धन तुम
रघुवर चित तुम
अपलक रहिए।।
नयन रमन तुम
विनय चयन तुम
हरषित मन तुम
हरदम करिए।।
जतन करहु तुम
सुखद अयन तुम
मम चित रब तुम
विधिवत बनिए।।
सुगम डगर तुम
अनहद घर तुम
पुलक पलक तुम
चितवन धरिए।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी