दोहा (छंद)
१. तुलसी का बिरवा नहीं, दिखता आँगन माँहि ।
संस्क्ति, आस्था त्याग सब, नए दौर में जाहिं ।।
२. नागफनी को रोप कर, मन में अति हरषाय ।
मन भी मरुथल हो गए, प्रेम बिन्दु न देखाय ।।
– राम दीक्षित ‘आभास’
१. तुलसी का बिरवा नहीं, दिखता आँगन माँहि ।
संस्क्ति, आस्था त्याग सब, नए दौर में जाहिं ।।
२. नागफनी को रोप कर, मन में अति हरषाय ।
मन भी मरुथल हो गए, प्रेम बिन्दु न देखाय ।।
– राम दीक्षित ‘आभास’