गुरु दोहा-अष्टक
गुरु ब्रह्मा विष्णु गुरु, गुरु शंकर अवतार।
गुरु मिलाएं ईश से, मन से हटाके विकार॥
सच्चे गुरु की सीख से, अपना जन्म सुधार।
चौरासी के फेर से,पा ले तू छुटकार॥
गुरु सूरज का तेज है, गुरु सद्गुण की खान।
उनके सद्-उपदेश से, ले निज को पहचान॥
हाथ पकड़कर सद्गुरु, कर देते उद्धार।
अपने दीपक आप बनो, सिखा लगाते पार॥
गुरु जीवन हैं, जान हैं, गुरु ही प्राणाधार।
सत्पथ दिखलाते गुरु , देकर ज्ञान का सार॥
सच्चा गुरु कैसे मिले, जान सके तो जान।
छोड़ना होगा अहं को, मान सके तो मान॥
गुरु शरण में बैठ के, ज्ञान का भोजन खा।
छप्पन भोग को छोड़ के, गुरु कृपा को पा॥
भग्वत् प्रेम निखार के, गुरु करते उपकार।
प्रभु से मिलने का तभी, सपना हो साकार॥