कहानी

कहानी : दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है

जेठ की दुपहरी, पुरवईया हवा, पछिया हवा के साथ संघर्ष करती हुई, मालदह, कृष्णभोग और बमई आम-महुआ मादक गंध से लिए चहूंओर घूम रही है, कोयल की कूक से वातावरण गूंजायमान है, गरमी देख के तो सुमित्रा चाची सूरज भगवान से बतिया रही है, काहे सनक गए है सूरूज देव, अंगना में से दुहारी पर निकलते-निकलते गोर जल के राख हो गया, उफर पड़ो ई गरमी के, हमरो अंग-अंग घमौरी पीट दिया है, उ नाईसिल के हरियरका डिब्बा वाला पाउडर प्रमोदबा के दुकान से मंगवाएं है, दिन में 4 बार छीटते है, जीना हराम हो गया है, मेघ बूनी भी न आ रहा है, तभी बगल में चबूतरे पर ताश खेल रहे और लाल पान की बीबी पटकते हुए सरयू बाबा बोले है ये भउजी केतना अधर्म बढ़ गया है, न देख रहें है, परसो उ पड़ोस गांव में बारिश हुआ ईहां नहीं हुआ, कभी सुरूज देव गर्माते हैं तो कभी शेषनाग फन हिला के भूकंप करवा देते हैं, धरती के विनाश तो अब निश्चित है, आ गीता में भी कहा गया है

“ यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् । परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्-कृताम्, धर्म-संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे ”

मतलब ऐतना अधर्म बढ़ गया है अब तो भगवान पक्का आएंगे,

तभी ताश खेल रहे हमउम्र के वैद्यनाथ बाबा ने कहा है, चल सरयू ज्यादा अध्यात्मिक ज्ञान मत पेल, चुपचाप खेल, बहुते ज्ञान ठेल रहा है, खुद भोरे-भोरे सुंदरकाड और बजरंग बाण पढ़ता है, आ सांझ होते दूसरे के खेत से जई, जनेरा काट लेता है, कहियो बजरंग बली तुम्हरे देहिया पर ही गदा बजारेंगे, सरयू बाबा तो जर के झरिया के कोयला हो गए है, उपस्थित सभी लोगों ने जोरदार ठहाका लगाया है.

गरमी के प्रकोप का क्या कहना? लग रहा कि सूर्य देव खुद पृध्वी पर आकर ही नाभिकीय संलयन करेंगे, 2 बजते-बजते और गरमा गए है, रोड के किनारे लगे आम के वृक्ष और उसके नीचे कहीं दूर से मोटरसाईकिल चलाकर पसीना से भीगा हुआ पथिक ठहरा है, तभी पास के मरईयै में आम की रखवाली कर रहे किसान उतर कर उस अंजान बाबू के लिए एक लोटा पानी लेकर के आया है, बाबू साहेब थोड़ा ठंढा लीजिए फिर पानी पी लीजिएगा, तभी थोड़ी देर में ही गच्छपक्कू मालदह रस से भरा हुआ गिरता है, ई अमबा भी खा लीजिए बाबू भूखे होंगे, मोटरसाईकिल वाले बाबू भी इस आवभगत को स्वीकार करने में परहेज नहीं करता है.

आज उतरवारी टोले रामकृपाल सिंह की तीसरी बिटिया का विवाह है, डीजे बज रहा है, आवाज पूरे गांव में गूंज रही है, जबसे रामकृपाल सिंह की गईया सुमित्रा चाची के खेत में चर गई थी तबसे सुमित्रा चाची से छतीस का आंकड़ा रहता है, लेकिन नेवता मिला है, कल तक तो चाची कह रही थी की मरला जिनगी रामकृपलबा के दुहारी पर न जाएंगे लेकिन आज भोरे-भोरे ललका साड़ी निकाली है, शिल्पी छाप बिंदी और गणेश पौरंगा से पैर रंग के सजबज के तैयार हो गयी है, भोरे भोरे उनके पति ने पूछा अचानके काहे विचार बदल गया, चाची बोली है कि झगड़ा हमरा और रमकृपलबा के बीच न है, रउआ देखी, बेटी सांझी होती है, पूरे गांव की होती है, आ पहिलकी दूनू बेटी के बियाह में हमहीं गीत गाएं थे तब जाके माहौल जमका था, ऐह बेर में न जाएं हो न सकता. गांव का स्वभाव ही ऐसा होता है, हर व्यक्ति एक दूसरे से जुड़ा हुआ है, जन्म हो मृत्यु हो सब एक दूसरे पर निर्भर है, हम कितना भी आपस में झगड़ ले लेकिन हम सब एक ही है, बिना किसी के कोई काम नहीं चलता है, उन्हें और कुछ नहीं चाहिए वो बस प्यार के वाहक है.

शाम हुआ बारात आने को है, गांव के लौंडे सब तो दूल्हे की गाड़ी को निहार रहे है, दूल्हा दक्षिण भारत के किसी कॉलेज से इंजीनियरिंग किया था, गुड़गाव में काम कर रहा है, एक बात है विवाह के दिन दूल्हा का पावर सम्राट समुद्रगुप्त से कम नहीं होता है, जो बोल दिया सो बोल दिया, मतलब ब्रह्मवाक्य, एकदमे अईसन फीलिंग लेता है कि समुद्रगुप्त जी दक्षिणापथ विजय के लिए निकले है, कनपटा के पास लंबी चौड़ी पट्टी रखे लईका का भाई शेरवानी पहने उतरा है, पहले उतरकर दूल्हा के दरवाजे को खोला है, दूल्हा बाबू शान से महाराजा वाली फीलिंग लेते हुए नीचे लैंड किए है,

गांव के कुत्ते सब भी माहौल में है, अलग सी ईनर्जी दौड़ गई है उनमें, पता न कौन उनको खबर किया है कि इधर दूल्हाबाबू आ रहें है

गोद में उठाकर दूल्हा बाबू को सरकारी स्कूल के दोमंजिले पर लैंड करवाया गया है, कायदे से देखा जाए तो सरकारी स्कूल को सरकार ने केवल बारात ठहराने के लिए ही बनवाया है, शिक्षकों के अभाव के कारण पढ़ाई तो होता नहीं है, बारात में दो चार अप्सराएं भी आई है, दूल्हा की कजिन है, गांव के लौंडे तो बस उन्हें ही निहारे जा रहे है, ललनमा तो झट से पेप्सी बोतल लेकर पहुंचा है, लीजिए महराज लजाईए नहीं, अपना ही घर समझिए, एक मोहतरमा ने गिलास लिया है और पेप्सी पीते वक्त इस बात का पूरा ख्याल रख रही है कि लिप्सटिक गरबड़ा न जाए. सोनुआ तो फेसबुक निकाल कर सर्च कर रहा और People you may know पर खोज रहा कि कहीं भेंटा गई तो झट से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज देंगें.

उधर दूल्हे के जीजाजी जो वरपक्ष को लीड कर रहें है, रामकृपाल बाबू को खोज रहे है, देहज का 2.50 लाख रूपया बाकी रह गया था, रामकृपाल बाबू पता न कहां न कहां गायब है, शिवम वस्त्रालय वाला ललका पॉलिथीन लिए, सुपरसोनिक वेग से भागते हुए रामकृपाल बाबू आए है, उत्क्रमित विद्यालय की नीचे वाले फ्लोर की बिल्डिंग के कोने वाले कमरे में दोनो पक्ष से दो-दो आदमी कमरे अंदर गया है, कुल खुदरा जोड़-जाड़ कर रामकृपाल बाबू ने 1 लाख 70 हजार रूपया इकठ्ठा कर दिया है, वर पक्ष की ओर से आए दूल्हे के जीजा जी भड़क गए, अईसे कैसे काम चलेगा, महराज आप खुद बोले थे, 2.50 लाख अभी बाकी है, उ बैंड बाजा वाला को देना है, गाड़ी वाला को देना है, हम तो उसको कहे थे कि चलो वहीं देते हैं, और आप कह रहे है कि नहीं होगा, जबान को कोई वैल्यूए नहीं है, आधा घंटा में अरेंज कीजिए नहीं तो बारात आगे नहीं बढ़ेगा, उन्होंने कहा है कि हम परसो तक दे देंगे, नदी किनारे वाला पंचकठवा खेत बेचे थे न तब ये जुगाड़ हुआ है, और पैसा कल तक हो जाएगा आप टेंसन मत लीजिए, हम परसो तक आपके दरवाजे पर पहुंचा देंगे, वर पक्ष मानने को तैयार नहीं है, नहीं नहीं और कुछो नहीं चलेगा बोलते हुए दूल्हे के जीजाजी भागकर निकले हैं, पसीना से तर रामकृपाल बाबू वहां से भागकर आए हैं, दरवाजे पर लगे साउंड बॉक्स में गाना बज रहा है कि

“दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है, दुल्हन का तो दिल दीवाना लगता है”,

रात के 10 बजने को है, चहुंओर खुशी छाया हुआ है, सब विवाह का आनंद ले रहें है, उधर बैंड बाजा भी अंधाधूंध बज रहा है, बारातियन सब तो नागिन डांस कर रहा है, बारात में आए सबसे निठल्ले लौंडे पर जिम्मेवारी है कि वो पटाखा उड़ाए, तड़ातड़ आवाज से माहौल बना हुआ, सब खुश है, बस रामकृपाल बाबू सैकड़ों की भीड़ में अकेला महसूस कर रहे हैं, उनके पास कोई विकल्प नहीं है, पसीना से भीगते हुए भागकर पत्नी के पास आए है, सारी व्यथा उनको सुनाने के पश्चात पत्नी तो रोने लगी है, सारे रिश्तेदारों में कानाफूसी होने लगी है, दुल्हन भी अब रो रही है, दूर बैठी सुमित्रा चाची के कान में भनक लगी है कि पैसों के कारण बारात जाने को है, खाली पैर भागकर वो घर गयी है, गेट खोलिए गोलूआ के पापा उ अलमरिया के चाभी दीजिए त, पति बिनोद बाबू ने पूछा है ई समय का करोगे चाभी लेकर, अरे दीजिए न ऐसे कैसे दरवाजा पर से बारात चल जतई, उ हमर बेटी नई है, जमीन जत्था अगला बेरी खरीदतई, अलमारी से पिछले दो वर्ष की जमा की गई पूंजी को निकाल कर के रामकृपाल सिंह के घर पहुंच गई है, और बोली है लीजिए और जाके मुंह पर फेंक के मारिए ई पैसा को, पास खड़े सभी के आंखों से आंसू नम है, नम आंखों से रामकृपाल बाबू पहुंचे है फिर उत्क्रमित विद्यालय में जहां इस बार उचित डील होगा, एकएक कर 80 हजार रूपया गिन दिए है, सबके चेहरे पर फिर से कुटिल मुस्कान लौट आयी है, बैंड बाजे की ध्वनि और तेज हो गई है, दूल्हा बाबू भी अब सजने लगे हैं, रामकृपाल बाबू अब लौटकर दरवाजे पर आएं है, दरवाजे पर बज रहे डीजे से आवाज आ रही है,

दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है, दुल्हन का तो दिल दीवाना लगता है।

आनंद कुमार

विद्यार्थी हूं. लिखकर सीखना और सीखकर लिखना चाहता हूं. सीतामढ़ी, बिहार. ईमेल-anandrajanandu7@gmail.com