सामाजिक

बेटियों के बहाने

बड़ा सम्बेदंशील शब्द है और कुटिल बुद्धिकारो के लिए अल्पसंख्यक, दलित की तरह इस्तेमाल करने में बहुत मुफीद! अल्पसंख्यक, दलित की तरह अब इनको भी इस्तेमाल करनेवालों की होड़ लगी है. क्योकि इनका भारत में सामाजिक स्वरुप ही कुछ ऐसा है. गांवो में एक किस्सा आम है. एक महिला सड़क किनारे घास काट रही थी, एक राहगीर उधर से गुजर रहा था. महिला बोली ज़रा सुनो. राहगीर बोला की मै जल्दी में हु. महिला बोली सुनो नहीं तो तुम्हे अभी बेइज्जत कर दूंगी. राहगीर बोला की मै अपने राह जा रहा हु, यू ही कैसे बेइज्जत कर डौगी. महिला बड़े जोर से चिल्लाई, बचाओ -बचाओ. आस-पास के लोग लाठी डंडा लेकर जुटने लगे. राहगीर मामला समझ गया और बोला की अब हमारी इज्जत तुम्हारे हाँथ में है. तबतक काफी लोग जुट गए थे, महिला बोली की एक तेंदुआ आ गया था, यह तो भला हो इनका जो मौके पर आ गए थे. गांववाले राहगीर की भूरी भूरी प्रशंसा करने लगे. भारतीय जनमानस के इसी मानसिकता का कुछ लडकिया फायदा उठाने की कोशिश कर रही है. मै समझता हु की किसी पर भी लाठी चार्ज होना बुरी बात है, चाहे वे लड़की हो चाहे लड़का या आम जन! लेकिन उपद्रवियों पर लाठीचार्ज होना बिलकुल जायज है चाहे वह लड़की हो चाहे लड़का हो चाहे आम जन. अब ज़रा रोटी सेंकने वालो के चेहरे पर गौर कर लीजिये. रोहंगिया प्रेमी जो आई यश के थोक भाव में लडकियों के अपहरण पर चुप रहते है, कांग्रेस जिसके माननीय महिलाओं को तंदूर में जला देते है, कुटिल पत्रकार जिनमे अधिकतर अपने ही सहयोगी महिलाओं के साथ रेप करने के अभियोग में जेल में सैड रहे है. कितना आश्चर्यजनक है की बनारस में तीन तीन विश्वविद्यालय है और सैकड़ो कालेज है लेकिन वह आग यहाँ उतना नहीं धधक रही है जितना J N U, D U, और जामिया मिलिया में! उससे भी आश्चर्यजनक है की जो लडकिया सैकड़ो जवानो पर पत्थर मार सकती है, बाइक जला सकती है, पेट्रोल बम फोड़ सकती है वे आजतक किसी एक शोहदे का सर क्यों नहीं फोड़ी ?
पोर्न क्रिया करते करते JNU का अध्यक्ष बना कन्हैया, BHU के VC पर पोर्न देखने का आरोप लगा रहा है. कुछ पत्रकार VC को विश्वविद्यालय में लडकियों को मांस न मुहैया कराने के लिए भर्त्सना कर रहे है. अशिष्ट से अशिष्ट भाषा का प्रयोग इन लोगो के द्वारा हो रहा है. समझ में नहीं आता की जब कश्मीर में पत्थरबाजी कर रही महिलाओं पर पुलिस कार्यवाही कर सकती है तो BHU में क्यों नहीं. मोदी सरकार VC को हटा दे या स्वंय हट जाय लेकिन इससे समस्या बढ़ेगी, घटेगी नहीं. २००२ का वक्त इससे भी बुरा था जिसमे मोदी के दृढ़ता से वहा तीन तीन बार सरकार बनी और वही से केंद्र का भी रास्ता निकला. JNU में जो गलती मोदी सरकार कर चुकी है उसे अब नहीं दोहराना चाहिए. अगर उस समय कन्हैया के साथ देशद्रोही जैसा बर्ताव किया गया होता तो कन्हैयावादियो की इतनी संख्या न बढती.
हर विद्यार्थी को इतना ध्यान रखना चाहिए की विद्यालय तपोभूमि होता है, अनुशासन स्थल होता है न की मौज मस्ती मनाने का समुद्री किनारा. मुझे एक टिपण्णी याद रही है जो मैंने कही पढ़ा था की जब डा.राजेन्द्र प्रसाद BA आनर करने के बाद प्रिंसिपल से चरित्र प्रमाणपत्र मांगने गए तो प्रिंसिपल बोला की इस कालेज के विद्यार्थी के चाल ढाल से देखने वाला कह दे की यह इस कालेज का विद्यार्थी है. यही उसका चरित्र प्रमाणपत्र है.

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

रिटायर्ड उत्तर प्रदेश परिवहन निगम वाराणसी शिक्षा इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड मोबाइल न. 9936759104