गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

चले गए- ग़ज़ल

इक पल को मुस्कुराये रुलाकर चले गए
आये  ज़रा  सी  देर  को  आकर चले गए

मुद्दत  से  बादलों  का  हमे  इंतज़ार  था
बरसे मगर वो प्यास  बढाकर  चले  गए

इस दर्जा तल्ख़ियों की वजह उनसे पूछली
सारी  कमी  हमारी  गिनाकर  चले  गए

शायद किसी मक़ाम की जल्दी में थे ‘अज़ीज़’
रस्ते  जो  वापसी  के  मिटाकर  चले  गए

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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