वेषभूषा
आज मुझे कुछ दिन पहले की बात याद आ गई.
मैं और अम्बिका सैर कर रहे थे. हल्की-फुल्की बातें चल रही थीं. आजकल की वेषभूषा पर मैंने कहा- ”आजकल तो लड़कियों की वेषभूषा भी ऐसी हो गई है, कि कई बार तय ही नहीं कर पाते, कि अमुक लड़की है या लड़का.” अम्बिका हंस पड़ी.
आज अम्बिका का फोन आया-
”आंटी जी, आपने वह खबर पढ़ी? उस दिन आपकी बात पर मैं हंस पड़ी थी, लेकिन इस समाचार ने आपकी बात को सही सिद्ध कर दिया.”
”कौन-सी खबर बेटा?” मैंने पूछा.
”लड़का समझ डीयू स्टूडेंट को पीटा, …’लड़की हूं’ सुनते ही भागे हमलावर”. अम्बिका का कहना था.
कैसी विचित्र विडंबना है कि लड़की को पिटाई से बचने के लिए कहना पड़े- ”मैं लड़की हूं”! तनिक रुककर अम्बिका ने कहा.
— लीला तिवानी
बढ़िया लघुकथा
प्रिय विजय भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बढ़िया लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आज आधुनिकता के नाम पर पुरुषों के कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने की इच्छा ने महिलाओं को जागरुक तो किया है, लेकिन कुछ अधिक दिखाने की चाह में महिलाएं नारी सुलभ स्वभाव को भी तिलांजलि दे रही हैं. ऐसे में इस तरह की गलतफहमियां स्वाभाविक हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
sundar laghu katha lila bahan .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत सुंदर लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. आजकल नए ज़माने में सब कुछ सच है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
वेषभूषा के कारण लड़की को लड़का समझकर पिटाई, समाचार पर आधारित, यह लघुकथा सही वेषभूषा के बारे में इंगित करती है.