आग निकली फ़कत धुँआ निकला
आग निकली फ़कत धुँआ निकला
क्या तमन्ना थी और क्या निकला
जिसको सागर समझ रहे थे हम
एक सूखा हुआ कुआ निकला
दूर से जो करीब था बेहद
जब गये पास फ़ासला निकला
जो ही उतरा नकाब चेहरे से
उनका चेहरा नया नया निकला
आदमी मिल सका नही कोई
हर बशर आप में खुदा निकला
बात से बात बनी है हरदम
दुश्मनी का असर बुरा निकला
जो सभी को हँसा रहा था वो
शख़्स ग़म से भरा भरा निकला
सतीश बंसल
२७.०२.२०१८