लघुकथा – अर्वाचीन
घर में कदम रखते ही बेटे को सरप्राइज देने की इच्छा परी की धुमिल हो गई ।क्योंकि एक मैसेज मम्मी पापा के नाम किशोर ने भेजी थी ।मैसेज से कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा था बस इतना ही लिखा था आप दोनों मुझे माफ कर देना। यात्रा की थकान भूल कर सबसे पहले किशोर के कमरे में गई। चुपचाप उसके सिर को अपनी गोद में रखकर सहलाने लगी । किशोर मानों कब से इस स्पर्श को तरस रहा था ।“मम्मा एक बात पूछूँ ? हाँ बेटे जरूर पूछो; माँ जानती हैं मेरे एक फ्रेंड को एच आई वी पॉजिटिव आया है । क्या छूने से भी यह बीमारी फैलती है?”“साफ-साफ कहो क्या कहना चाहते हो ? जी पिछले साल हम सभी दोस्त पिकनिक पर गये थे ,वहाँ सभी खूब मस्ती किये।मैंने भी एक लड़की के साथ नृत्य किया था ।क्या मेरा भी रक्त एच आई वी पॉजिटिव हो गया होगा?”पल भर में उसने घबराकर बेटे से सारी राम कहानी सुनी , सुनकर चैन आया।बेटे को गले लगाते हुए बोली ; “ओह , अब मैं समझी तुम्हारी चिंता की वज़ह । बेटे इसमें कहीं ना कहीं माता-पिता भी दोषी होते हैं। बालिग होने से पहले इसकी जानकारी देनी जरूरी है।”“चिंता मत करो छूने से यह बीमारी नहीं फैलती, मगर सुरक्षित यौन सबंध के लिये वैवाहिक जीवन सबसे सुरक्षित माना जाता है।“थैंक्यू मम्मा अगर आज आपसे खूलकर बात नहीं करता तो शायद स्वयं को दोषी मानकर सूसाइड कर लेता ।”“ना मेरे बच्चे हमारी गलती की सजा तुम कभी स्वयं को मत देना ।आधुनिकता का लिबास हमने पहनाया है ।तुम भला स्वयं को दंड क्यों दोगे?””जाने अंजाने हमारी व्यस्तता से तुम अकेले पन का शिकार हुए।भौतिक संसाधनों को जूटाने में हम बहुत आगे निकल गये।”“नहीं मम्मा यह सब मॉडर्न सोसायटी की देन है, हाँ पॉकेट मनी का हिसाब कभी नहीं पूछती यह आपकी गलती है।”
— आरती राय.