कहानी

“भरोसा” भाग 3

कंपनी चलाने के लिए रोज रोज पार्टी में जाना, नए नए लोगों से मिलना, उनके साथ डांस करना, मिल बैठकर पीना, यह सब करना पड़ेगा, यह तो ईशा ने सपने में भी नहीं सोचा था। एक ऐसे माहौल में उसकी परवरिश हुई है, जहां पर ऐसी संस्कृति को मान्यता नहीं दी जाती है। उसके पिता एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफ़ेसर थे। एक शिक्षक होने के नाते बच्चों को अच्छी संस्कृति देना उनके लिए सबसे पहला कर्तव्य था। अपने बच्चों को भी उन्होंने वही संस्कार, वही संस्कृति देने का भरसक प्रयास किया है। ईशा की रग रग में भारतीय संस्कृति और सभ्यता रची, बसी हुई है। जिसने स्वयं को बचपन से ही ऐसे माहौल में ढाल लिया है, उसे अत्याधुनिक कहे जाने वाले इस माहौल में स्वयं को ढालना अर्थात स्वयं के प्रति अन्याय और अत्याचार करने के समान ही है। क्षितिज के बारे में तो उसने ऐसी कल्पना ही नहीं की थी। एक पति का स्वाभिमान उसकी पत्नी होती है। पत्नी अगर कोई गलत कदम उठाए तो पति को एतराज होना चाहिए, ऐसा मानना है ईशा का। परंतु.. यहां तो बात बिलकुल विपरीत है। पति स्वयं पत्नी को वह सब करने के लिए बाध्य कर रहा है जो उसके स्वाभिमान के विरुद्ध है।
“क्षितिज कंपनी चलाने के लिए मेरा रोज रोज पार्टी में जाना जरूरी है क्या?”
“मेरी कंपनी नई नई है ईशा। लोगों से मिलेंगे नहीं तो कस्टमर कैसे बढ़ेंगे? कंपनी की प्रगति के लिए यह बहुत आवश्यक है कि हम पार्टियों में जाए और लोगों से मिले।”
“तुमने तो कहा था मुझे कंपनी के काम में हाथ बटाना है।”
“यह भी तो कंपनी का ही काम है!”.. क्षितिज मंद मंद मुस्कुरा रहा था।
“यह कैसा काम है कंपनी का? यह तो मेरे समझ से परे हैं। कंपनी अकाउंट को मैनेज करना है तो मैं कर सकती हूं। कंपनी में बैठकर कस्टमर को डील करना है वह भी मैं कर सकती हूं। परंतु.. पार्टी में जाकर ढोंग करना मेरे स्वभाव में नहीं है। यह मेरे लिए करना मुश्किल ही नहीं असंभव है।” ईशा क्रोध से तिल मिला रही थी।
“करना तो तुम्हें पड़ेगा ही, पत्नी हो मेरी! अपने आपको ढाल तो बेहतर होगा।” क्षितिज की बातों में सख्ती के साथ आदेश भी था।

क्षितिज की बात सुनकर ईशा को क्रोध आया और उसके साथ साथ अपनी मजबूरी पर आंखों में आंसू भी छलक आए। मन में वितृष्णा का भाव घर कर गया। मन तो चाह रहा था कि अभी रिश्ते नातों का सारा बंधन तोड़ कर कहीं ऐसी जगह पर चली जाए, जहां पर मन में शांति हो और जीवन में सम्मान हो। वह स्वयं से ही सवाल करने लगी..”ये कहां आकर फस गई मैं! ये क्या किया मैंने, मुझे सोच समझकर कदम उठाना चाहिए था। जिसे मैंने पति के रूप में स्वीकार किया है उसे तो आपने पति होने का अभिमान भी नहीं है और ना ही पत्नी के स्वाभिमान की कोई चिंता है। कोई पति अपनी पत्नी से यह सब काम कैसे करवा सकता है? क्या उसके पुरुषत्व को जरा भी चोट नहीं लगती कि उसकी पत्नी किसी और के साथ बैठकर पिए, किसी और के साथ फ्लोर पर डांस करें, यह कैसा प्यार है क्षितिज का। यह कैसी आधुनिकता है जो इंसान को अपनी संस्कृति भूला कर इतने नीचे गिरा देती है। धन कमाने के लिए किसी भी मार्ग पर चलने को मजबूर कर देती है। इंसान को जीने के लिए धन-संपत्ति की आवश्यकता तो है परंतु वह धन संपत्ति गलत रास्ते पर चलकर कमाया जाए यह बिल्कुल अनुचित है। मुझे क्षितिज का विरोध करना पड़ेगा, वरना.. पानी सर के ऊपर से निकल जाएगा और मैं उसमें डूबती चली जाऊंगी। हाथ-पांव मार कर भी मुझे किनारा नहीं मिलेगा।”

“तुमने क्या मेरे साथ इसलिए शादी की थी कि तुम्हारे बिजनेस को बढ़ाने के लिए मैं यह सब करूं! मेरे स्वाभिमान का सौदा तुम अपने रुपए पैसों के साथ नहीं कर सकते। तुम्हें धन कमाना है जरूर कमाओ, किसी ने तुम्हें रोका नहीं है। परंतु.. धन की बेदी पर तुम मेरी बली नहीं चढ़ा सकते। मैं यह होने नहीं दूंगी। मैं जीना चाहती हूं इज्जत के साथ। स्वाभिमान से सिर ऊंचा करके। मैं तिल तिल मरना नहीं चाहती।”.. ईशा ने सख्ती दिखाते हुए कहा।
“तो इसमें हर्ज क्या है, पार्टी में और भी लोग आए थे और भी लोगों की पत्नियां भी थी! वह सब यही कर रही थी!”
“करती होंगी, पर मैं उस मिट्टी की नहीं बनी हूं कि तुम मुझे यह सब करने के लिए मजबूर कर सकते हो। मैंने तो सोचा था कि बिजनेस पार्टी में जाना एक साधारण बात है, पर मुझे अब समझ में आ रहा है कि बार-बार बिजनेस पार्टी में जाने का अर्थ क्या है? मुझसे यह सब नहीं होगा!”
“तुम मेरी पत्नी हो तो.. पत्नी का धर्म नहीं है क्या पति के काम में सहायता करें।”
“तुम्हारे कंपनी में मेरे लायक कोई काम हो तो मैं अवश्य करूंगी। पर.. पार्टी में जाकर यह सब करना मेरा काम नहीं है। क्या तुमने मुझसे इसलिए शादी की थी?”.. ईशा ने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा
“हां.. हां.. इसीलिए की थी शादी, ताकि तुम मेरे बिजनेस को आगे बढ़ा सको।”.. क्षितिज ने बेशर्मी से चिल्लाते हुए कहा।
“तो तुम्हें एक अदद कॉल गर्ल चाहिए थी। तो, किसी कॉल गर्ल से शादी कर लेते। मुझ जैसे शरीफ लड़की से शादी करने की हिमाकत क्यों की?”
“पता है तुम कितनी शरीफ हो, ऑफिस में सबसे हंस हंस के जिस तरह से बातें करती थी, वह देख कर ही मैं समझ गया था। तभी तो मैंने हाथ बढ़ाया कि तुम मेरे लिए भी अच्छी काम की हो।”
“छीः क्षितिज, तुम इतने गिरे हुए हो यह मैंने कभी सोचा ही नहीं था। कोई इंसान पैसे के लिए इतना गिर भी सकता है?”.. ईशा गुस्से में पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर ली।

कुछ महीनों के पश्चात अनु का जन्म हुआ। मां बनने की खुशी में ईशा सब अपमान, दुख भूल गई थी। यह खुशी तो ऐसी खुशी है जो जीवन में आते ही जीवन को एक नया मोड़ दे देती है। जीवन खुशी के झूले में झूलने लगता है चारों और खुशियां ही खुशियां नजर आती है। अपना सारा ममत्व अनू पर लुटा कर ईशा बहुत संतुष्ट थी। उसका सारा समय, सारा दिन अनु के इर्द गिर्द नाच कर कैसे बीत जाता कुछ पता ही नहीं चलता। समय पंख लगा कर जैसे उड़ गया। अनु छः महीने की हो गई। बहुत सुंदर, गोरी और प्यारी सी है अनु, देखकर ईशा का मन आनंद से भर जाता।

एक दिन फिर अचानक क्षितिज ने ईशा से कहा..”आज रात को एक पार्टी है, आज चलना है इशा पार्टी में। यह पार्टी बहुत जरूरी है, अगर मैं इस पार्टी में एक बड़ी कंपनी के मालिक को खुश कर पाया तो.. मुझे बहुत बड़ी डील मिलेगी, जिससे मेरी कंपनी एकदम से ऊंचाई पर पहुंच जाएगी।”
“नहीं.. अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए, तुम मुझे शतरंज का मोहरा नहीं बना सकते। वैसे भी अनु अभी छोटी है, उसे छोड़कर मैं नहीं जा सकती। उसे समय पर दूध देना, खाना खिलाना, बहुत जरूरी है नहीं तो रोएगी।”.. ईशा ने बहाना बनाते हुए कहा।
“अनु को संभालने के लिए घर में नौकरानी है। तुम्हें इतनी चिंता करने की जरूरत नहीं है। तुम तैयार हो जाना, जाने के लिए।”.. आदेश करते हुए क्षितिज निकल गया।
अनु की चिंता करते हुए, मन मारकर ईशा को जाना पड़ा। पर यह सिलसिला अब फिर से शुरू हो गया था। आए दिन वही पार्टी, वही सब दिखावा, वही सब रंग ढंग। मन ना चाहते हुए भी ईशा को अनु के बारे में सोच कर सब करना पड़ा। यह सब करते करते वह थक चुकी थी। उसके जीने की इच्छा जैसे दम तोड़ने लगी थी। अनु का प्यारा सा मुखड़ा देखती तो फिर जीने की इच्छा बलवती होने लगती “नहीं.. मुझे इस तरह हार नहीं माननी है। मुझे अनु के लिए जीना है।” कहीं से एक शक्ति आकर उसके अंदर समा जाती और वह उठ कर खड़ी हो जाती, दोबारा जिंदगी के इस कठोर मार्ग पर चलने के लिए।

देखते देखते अनु छः साल की हो गई। अब ईशा को अनु की जिंदगी के बारे में सोच कर चिंता होने लगी..” अब अनु काफी समझदार हो गई है। अगर उसने यह सब रंग ढंग देख लिया तो उसके ऊपर क्या असर पड़ेगा? नहीं.. नहीं.. मैं ऐसे माहौल में अनु को बड़ी होने नहीं दूंगी। उसे अच्छी शिक्षा दे कर, अच्छे संस्कार दे कर एक अच्छा इंसान बनाना है। मुझे उसे इस माहौल से दूर लेकर जाना पड़ेगा।”

आखिर उसने ठान लिया कि..” अब वह क्षितिज की बात नहीं सुनेगी। उसका विरोध करेगी, चाहे उसे इस घर से जाना पड़े। चाहे यह रिश्ता टूट जाए। वैसे भी इस रिश्ते की डोर इतनी कमजोर है कि इसको अधिक दिन तक संभाल कर रखना मुश्किल है। अनु के भविष्य के लिए, उसकी अच्छी जिंदगी के लिए यह रिश्ता मुझे तोड़ना ही पड़ेगा। वैसे भी इस रिश्ते में अब रखा ही क्या है? केवल अपमान और तिरस्कार…!!

आखिर एक दिन ईशा अनु का हाथ पकड़कर घर से निकल पड़ी। उसकी एक सहेली है नम्रता, जिसकी मदद से वह अच्छे माहौल में एक छोटा सा फ्लैट किराए पर लेख लेकर रहने लगी। नम्रता जिस कंपनी में एरिया मैनेजर के पद पर पदस्थ है, उसी कंपनी में नम्रता की मदद से ही ईशा को अकाउंटेंट की नौकरी मिल गई। पहले कार्य करने का अनुभव इस समय ईशा के काम आ गया। कहते हैं ना कि ईश्वर सारे रास्ते कभी बंद नहीं करते। इस कठिन समय में नम्रता का साथ निभाना केवल एक संयोग नहीं है, ईश्वर का भी हाथ है इसमें। छः महीने के पश्चात एक वकील की सहता से ईशा ने कोर्ट में तलाक का केस दायर कर दिया। उसने ठान लिया कि मुझे किसी भी कीमत पर क्षितिज से और उसकी नारी के प्रति घिनौनी सोच से मुक्ति पानी है।

ईशा को अनु के साथ, जीवन का यह सफर बहुत सुहाना लग रहा है। एक सुकून है, एक अपनापन है। एक खुला आकाश है जहाँ वह पंख फैलाकर अनु के साथ उड़ सकती है। ऑफिस से आने के बाद का समय अनु के साथ हंसी, खुशी बीत जाता। उसने घर में एक आया रख ली है जो अनु को स्कूल से ले आती है और उसका देखभाल करती है। सुबह उठकर अनु को स्कूल भेजना, उसका टिफिन तैयार करना, दोपहर का खाना तैयार करना, फिर ऑफिस जाना। ऑफिस से आकर फिर अनु के साथ उसकी पढ़ाई में मदद करना, उसके साथ खेलना। समय कैसे निकल जाता कुछ पता ही नहीं चलता। व्यस्तता भरी यह जिंदगी ईशा को बहुत अच्छी लग रही है। ऐसा लग रहा है जैसे सही मायने में वह अब जीवन जी रही है, जीवन का कोई अर्थ है।

ईशा का तलाक का केस भी काफी जद्दोजहद के बाद एक सकारात्मक नतीजे पर पहुंचा। उसको तलाक मिल गया है। क्षितिज ने अनु को अपने पास रखने के लिए कोर्ट में अर्जी डाली थी पर.. अंत में कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया कि जब तक अनू बालिग नहीं हो जाती, तब तक वह अपनी मां के पास ही रहेगी। बालिग होने के बाद उसे कहां रहना है यह निर्णय वह स्वयं लेगी। इस बात से ईशा को काफी राहत महसूस हुई, वह निश्चिंत हो गई अनु को लेकर। ईशा ने कई बार सोचा कि वह शहर छोड़ कर मुंबई चली जाए पर अपनी नौकरी की वजह से छोड़ नहीं पाई। वह पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहती है। पीछे जो घटित हुआ उसे भूल जाने में ही उसकी और अनु की भलाई है। वैसे भी दुखद अतीत को भुलाकर वर्तमान में जीना ही बुद्धिमानी है। और.. वह अनु के साथ हर पल को खुशियों से महकाते हुए जीने लगी..!!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com