कविता

टुटा  दिल  हमारा 

ऐसा टुटा दिल हमारा न आँख रोइ न लब मुस्कुराया
आँसू पी गया मै अपनी पर लब से कुछ नीकल न पाया
बहुत कर ता था प्यार उससे बस एक बात ही ऐसी कर गई
जहा चढ़नी थी परवान दोस्ती दूरी में बदल गई
कैसे करे उन से बात जब परछाई से भी दूर रहते है
अब दिल क्या मिलेंगे कभी जब  हाथ भी नहीं मिलते है
कभी न भूलुंगा वो यादें जो साथ में बिताये थे
हॅसे थे रोये थे कभी पर साथ ही दिन बिताये थे
दिन बदला धरा बदली बदल गए सारे व्यवहार
नदी के दो छोड़ पे खड़े है जैसे हो हम अनजान

रवि प्रभात

पुणे में एक आईटी कम्पनी में तकनीकी प्रमुख. Visit my site