पापा मुझको मारना मत
पापा मुझको मारना मत
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भरा हुआ है अपना आँगन, बारिस के पानी से,
नाव बनाया कागज की, फाड़ के अपनी कापी से।
डूब गये हैं कई अभी तक, मगर बनाये जाता हूँ,
आधा पेज हुआ है गायब, पापा अपनी कापी से।।
डर लगता है बहुत आपसे, आप बहुत मारेंगे,
आया गुस्सा अगर आपको, रौद्र रूप धारेंगे।
पर मस्ती के पल में मैंने, नाव बनायी चाहत से,
आज हमें जो छोड़ दिया तो, कापी कभी ना फरेंगे।।
हाँथ जोड़कर विनती करता, पापा मुझको मारना मत,
कान पकड़ कर बैठक करता, पापा मुझको मारना मत।
रोका था मैंने खुद को पर, जाने क्यों ना रोक सका,
शापथ पुनः ना फाड़ेंगे, पापा मुझको मारना मत।।
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदीकला, सुलतानपुर
7978869045