श्राद्ध पक्ष में एक पुत्र का क्रन्दन
पूज्य पिताजी !
मैं सम्भवत: दुनिया का सबसे अभागा व्यक्ति हूँ, आज मैं फूट फूट कर रो रहा हूँ. कितना दुःख दिया है, मैंने आपको, और दिल दुखाने की तो सीमा ही नहीं रही है.
आप जब मृत्युशैया पर थे तब मैं बाहर से तो रो रहा था परन्तु मैं और मेरी पत्नी भीतर- भीतर ही जश्न मना रहे थे और बेहद खुश थे. खुश इसलिए थे कि बूढ़े व्यक्ति का बोझ अब नहीं उठाना पड़ेगा. उस आदमी की बार-बार, हर बार की टोका टोकी ख़त्म हो जायेगी, जो हर बात पर बिना मांगे सलाह देता रहता था और जब देखो तब यह करो, यह मत करो कि रट लगाने लग जाता था. ये मत खाओ, ये मत पियो, देर तक मत जागा करो, जल्दी सोया करो, जल्दी जागा करो, व्यायाम करो, योग करो. इन दोस्तों की संगति मत करो, नौकरी में किन लोगों से कैसा व्यवहार करो, अनावश्यकरूप से मत उलझों, दफ्तर की बातों का दुष्प्रभाव घर तक मत आने दो, उसके कारण बीवी-बच्चों पर गुस्सा मत करो. बात-बात की टोकाटाकी ने मुझे आपके प्रति विद्रोही बना दिया था. मुझे बार-बार यही लगता था कि हमारे बच्चों को आपने कितना सिर चढ़ा दिया था, बेहद लाड़ प्यार ने उन्हें उत्पाती और शैतान बना दिया.
आपकी सारी अच्छाइयों की स्मृतियों के उपरान्त भी मैं अपनी और अपनी पत्नी की अपरिपक्व मानसिकता, अदूरदर्शी सोच और आधारहीन हठधर्मिता के चलते आपका सैकड़ों बार अपमान करता रहा, निरन्तर अवहेलना की, अवज्ञा की. आपके कीमती अनुभवों को हम कचरा समझते रहे.
उन्हें याद कर इन दिनों मैं रातों को घण्टों तक रोता रहता हूँ, पिताजी ! आप तो देख पाते होंगे.
शायद नहीं, यह बात सौ फीसदी सत्य है कि ममता, प्यार, अनुराग, अपनत्व और निश्छलता की साक्षात अवतार मेरी मां भी हमारे अपमानजनक, पीड़ादायी, और मर्मान्तक तानों, उलाहनों के कारण ही कम उम्र में ही चल बसी. मां, मां ! मैं आपको कितना मिस करता हूँ, हमें माफ़ कर देना, प्लीज.
पिताजी, आपके जाने के एक साल के भीतर ही हमें लगने लगा कि आप तो बरगद के विराट पेड़ थे. आपके पिताजी तो आपको केवल सरस्वती का वरद पुत्र ही बना पाए थे और आपने अपनी बौद्धिक क्षमता, लगन, अनथक मेहनत कर अकल्पनीय रूप से उन्नति की. हमें इतना घर दिया, सुख सुविधाएं दी, बैंक बैलेंस दिया, शिक्षा दिलवाई. मुझे याद है कि जब मैं छोटा था, तब आप साइकल पर मीलों दूर तक काम पर जाया करते थे, मां भी बताती थी, आपके दोस्त भी अक्सर बताया करते हैं, कि किसतरह हमें पालने-पोसने और सुख-सुविधाएं देने के लिए आपने स्वयं की इच्छाओं और शौक को अपने दिल में ही दफ़न कर दिया था. आज जब पीछे देखता हूँ तो लगता है, जिस व्यक्ति ने अपना सर्वस्व हम पर लूटा दिया था, उसकी देह जब मृत्युशैया पर थी तो हम भगवान से प्रार्थना कर रहे थे और प्रतीक्षा कर रहे थे कि इस बुड्ढे की आत्मा कब प्रयाण करेगी ?
आज हम दोनों के पास सबकुछ है, परन्तु बच्चों के लिए समय नहीं है. बच्चों को समय नहीं दे पाने के कारण वे उत्पाती, विद्रोही हो गए हैं और आपके साथ हमारे आचरण को याद कर हमारे खिलाफ खड़े होने लगे हैं.
आप तो अपने पोते-पोती यानी हमारे बच्चों को सच्चा प्यार देते थे, उनको समाज के तथाकथित एटिकेट के सांचों में ढालने के चक्कर में हमने एक रोबोट-सा बना दिया है, ऐसे खाओ, ऐसे चलो, चलो ये करो, वो करो. हालत इतने बुरे हो गए हैं कि हम उनके दिलों से कोसों दूर हो गए हैं, कहने को वे हमारी अपनी प्यारी संतानें हैं, पर उन्हें लगने लगा है कि हम केवल केयरटेकर हैं. सामाजिक ढांचे में फिट रखना ही जिनका बड़ा दायित्व है, जो चाहते हैं कि उनकी औलादें पैसा कमाने की बढिया मशीन बनकर उनका नाम रोशन करें. उनके प्रति हमारी आत्मीयता का अहसास उनमें हम नहीं जगा पा रहे हैं. उनके पास हमारे लिए स्नेह और सम्मान नहीं है और हम समय के चक्कर पर माता-पिता होने का पाखण्ड कर रहे हैं.
आप पिछले कुछ सालों से जब एक सेवानिवृत्त व्यक्ति की तरह घर पर रहकर भी निरन्तर कुछ न कुछ करते रहते थे तो घर के कई काम कैसे निपट जाते थे, पता ही नहीं चलता था. अब वे काम ही हमारे लिए कठिन-से हो गए हैं, अब तो हम दोनों भी एक दूसरे को दोषी ठहराकर आपस में लड़ने रहते हैं.
आपकी नियमित दिनचर्या के चलते आप तो कभी अस्पताल नहीं गए, परन्तु हमारी हालत तो बेहद ख़राब हो चली है, खाने की स्वतंत्रता डॉक्टरों की गुलाम हो गई है.
तब आप बच्चों को घर पर ही पढ़ा दिया करते थे, अब ट्यूशन भेजना पड़ रहा है, अखबारों में पढ़- पढ़ कर यह डर हमेशा बना रहता है कि ट्यूशन मास्टर कुछ गन्दी हरकत ना कर दें और यदि कर दी तो क्या बिटिया हम से इतनी खुलेगी, जितना वह आपके पास सहजता महसूस करती थी. मुझे वह घटना भी अच्छी तरह से याद है, जब कुछ चोर घर में घुस आये थे और आपने जोर से चिल्लाकर बोला था, कौन है और उनकी आवाज के शोर से पड़ोसी भी जग गए थे और चोरों को अपने औजार छोड़ कर भागना पड़ा था. उस समय का वह दृश्य मुझे याद है कि दोनों बच्चें आपसे चिपटे हुए डर से थर-थर काँप रहे थे.
आजकल रात में हम दोनों थक कर अपने कमरे में चले जाते हैं, फिर हमें पता ही नहीं चलता कि हमारे बच्चें रात में कितनी देर टीवी देख रहे हैं, वीडियो गेम खेल रहे हैं, वाट्सअप में क्या देख रहे हैं और यदि रात में उन्हें अचानक कोई तकलीफ हो जाए तो उन्हें तत्काल कौन सम्भालेगा ? घर के नौकर-चाकरों पर आपकी निगहबानी के चलते घर की वास्तविक सफाई सम्भव थी, अब तो सब कुछ बेतरतीब हो चला है. हमने यह सोचकर पुराने नौकरों को निकाल दिया कि उन्हें आपने बहुत मुंह लगा रखा है और नए नौकरों में से कुछ ने तो अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है. कई चीजें गायब होने लगी हैं. बिना नौकरों के काम हो नहीं सकता और उनकी चौकीदारी हम से सम्भव भी नहीं है. एक ही साल में दो बार घर में चोरी हो चुकी है. रातों की नीन्द
ये सब तो दुनियावी बातें हैं, परन्तु अब मुझे शिशुपन से लेकर आज तक दिया आपका लगाव, प्यार, अपनत्व, स्नेह, मेरी हर मांग को पूरी करने की आपकी समर्पित जिद याद आती है. बचपन में दिया आपका प्यार याद आता है. मेरी पढ़ाई के लिए आपका रात-रात भर जागना, मेरी ज़रा-सी सर्दी-खांसी में आपका बेहद परेशान होकर और अपना कामकाज छोड़कर मेरे बिस्तर के पास ही बैठे रहना, बार-बार माथे पर हाथ रखकर बुखार देखकर परेशान होना.
अभी मैं जर्मनी और अमेरिका में हुई रिसर्च पढ़ रहा था, उसमें लिखा है कि दादा-दादी, नाना-नानी के लाड़ प्यार में पीला बच्चों में डिप्रेशन की समस्या नहीं होती है, वे संघर्षशील हो जाते हैं, उनका शारीरिक-मानसिक-भावनात्मक विकास सुव्यवस्थित होता है, उनके भीतर निडरता और समस्या से जूझने का माद्दा पैदा होता है और उनके इस सुनिश्चित विकास को देख देख कर उनके दादा-दादी, नाना-नानी में एक अभूतपूर्व संतोष और जीवन के प्रति संतुष्टी का भाव आता है, जिसके चलते वे शारीरिक और मानसिक रूप से अधिक स्वस्थ रहते हैं और उनकी एक्जिस्टिंग बीमारियाँ भी नियंत्रित रहती है. यह भी लिखा है कि वे लोक व्यवहार सीखने लगते हैं, पक्षियों और पर्यावरण की विविधता देखने में आने वाले आनन्द का आनन्द उठाने का नजरिया उनमें पैदा हो जाता है. वे अनायास ही पर्यावरण के रक्षक भी बन जाते हैं. वैज्ञानिक कहते हैं कि पांच साल की उम्र तक बच्चों को निश्छल प्रेम का भरपूर वातावरण मिलें, यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार है.
हमारी हालत तो वक्त ने ऐसी बना दी है कि हम उनकी जिद को पूरा करने को ही प्रेम का नाम देने का धोखा स्वयं को भी दे रहे हैं, बच्चों को भी दे ही रहे है. सच बताऊँ पिताजी, उनकी जायज-नाजायज जिद भी अपनी समय नहीं दे पाने की नाकामी छिपाने के लिए और उनसे पिण्ड या पीछा छुडाने के लिए करते हैं और अब वे उसका गलत फायदा लगे हैं, ब्लैकमेल करने लगे हैं और उनके दोस्तों ने इस स्थिति का गलत फायदा उठाना शुरू कर दिया है.
आपको याद है, वह लड़का पिन्टू, जो मेरा दोस्त था, जिससे आप बहुत नफरत करते थे, आपने तो बहुत कोशिश की कि उसके साथ मत रहा करो, उसको कई बुरी आदतें हैं, तब मैंने कहा था कि मैं इतना समझदार हो चुका हूँ कि उसकी अच्छी आदतों का ही अनुसरण करूंगा, आपके जीते-जी ही उसने पहले शराब पीना सिखाया, फिर सिगरेट और फिर तो दूसरी बुरी लतें भी सीखा दी. फिर भी मैं उसको और उसके सभी दोस्तों को, जो मेरी भी दोस्त होने का नाटक करते थे, को अपना सबसे बड़ा हितैषी मानने लगा था. शायद आपको पता भी नहीं चला होगा कि मैंने आपकी अलमारी से बीस हजार निकाल कर अपने दोस्तों को दे दिए थे. अभी कुछ दिनों पहले पिन्टू को पुलिस ने किसी जुर्म में पकड़ा था तो उसने मेरा भी नाम ले लिया, जिसके चलते दो दिन तक पुलिस मुझसे पूछताछ करती रही और मुझे मारा भी, वह तो मैं निर्दोष था, इसलिए आपके एक दोस्त ने कोशिश कर मुझे छुड़वा दिया. आप मुझे मितव्ययिता का पाठ पढ़ाते थे, मैं आपको कंजूस समझता था, आप अपनी हार्ड मनी को सही काम के लिए खर्च करने में विश्वास करते थे, मैं फिजूलखर्ची को जीवन का असली मजा समझता रहा, बाप कमाई को मैंने पानी की तरह बहा दिया. तब मेरे दोस्त कहते थे, जिन्दगी का क्या भरोसा आज है, कल नहीं, इस गलत गणित के चक्कर से मैं अब निकल पाया हूँ, परन्तु अब पछतावा ही बचा है. अब तो मैं बेहद चिड़चिड़ा हो चुका हूँ.
पिताजी, क्या आप और मम्मी फिर से आ सकते हो, प्लीज आ जाओ न. आपके दोस्तों के कहने से मैंने इस श्राद्ध पक्ष में अपनी सारी बुरी आदतों का पूरीतरह त्याग कर दिया है, उन्होंने कहा था कि इससे तुम्हारे पिता को स्वर्ग में शान्ति मिलेगी.
पिताजी ! आज जब मैं आपके चरणों में लिपट कर प्रायश्चित करना चाहता हूँ और आप हैं ही नहीं, कितना अभागा हूँ मैं, मैं तो लूट चुका हूँ, परन्तु समाज के झंडाबरदारों, साधू-सन्तों और शिक्षाविदों से मेरी विनम्र और दण्डवत कातर प्रार्थना है कि स्कूलों में भविष्य निर्माण की नहीं चरित्र निर्माण की शिक्षा दें, उन्हें आज्ञाकारी भगवान श्री राम की कहानी को जीना सिखाएं, राम और लक्ष्मण और भरत और राम के प्रेम की कथा सुनाएँ, उन्हें श्रवणकुमार की कहानी बताएं, उन्हें कृष्ण सुदामा की कथा को जीवन में उतारने की शिक्षा दें, महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज, भगतसिंह, सुभाषचंद्र बोस, वीर सावरकर, स्वामी विवेकानन्द चरित्र पढाया जाये. दूसरों के पेट पर लात मारना गलत है और दूसरों का हित करना ही मनुष्य जीवन का सार है, स्वयं कष्ट उठाकर समष्टि को सुख देना ही मानव जीवन का लक्ष्य है, यह नहीं सिखाएं. नैतिकता सिखाएं, माता-पिता के त्यागों को बच्चों के बालमन में रोप दें. दुष्टों की संगति कैसे क्षणिक सुख और बाद में आजीवन विषबेल का रूप धारण कर लेती है, यह नई पीढी के बच्चों के मन में स्थायी रूप से रोपा जाए.
— डॉ. मनोहर भण्डारी