कविता

कलम की बेबाकियां

कलम तुम इतनी बेबाकियां कहां से लाती हो।
कुछ भी लिखने में देर नहीं लगाती हो।
एक एक शब्द चुनकर,शब्द कोषों से उठा लाती हो।
फिर बड़े करीने से हर भाव को,श्वेत पत्रों पर सजाती हो।
रेखाओं पर रेखायें खींचते खींचते कभी थकती नहीं हो।
दिमाग के दिल से कभी हटती नही हो।
तुम एक दिन इतना थक जाओगी
खाली कैनवास की तरह रिक्त हो जाओगी।
कूड़ेदान में कूङे की तरह फेंक दी जाओगी।
मगर तुम्हारा ये नीला रंग युगों युगों तक किताबों की तिजोरी मे बन्द रहेगा ।
और तुम्हारे परिचय का पंछी,
इन्द्रधनुष के रंग परों पर समेटे हुए,
नीले आसमान में अनवरत उङान भरने के लिए स्वच्छंद रहेगा ।।
— शोभा सचान

शोभा सचान

कवयित्री दिल्ली। Shobha.sachan9@gmail.com