कैक्टस के फूल
क्रिसमस की पार्टी का आनंद कॉलोनी के बूढ़े-बच्चे उठा रहे थे। स्वाभाविक है जहाँ धूँआ वहाँ आग होगा ही ,ठीक उसी तरह सबकी चर्चा का केंद्र धरा थी , क्योंकि धरा इस पार्टी में शामिल नहीं हुई थी ।
मानवीय संवेदनाओं से लबरेज कभी आँसू कभी शुष्क होठों पर अपना जीभ फिरा कर बस अपना दुख अपने आप से कह सुन कर वक्त बिता रही थी। उसे पता था कि जीवनसाथी के बिछड़ने के बाद आज तक कोई दुसरा हमदर्द या साथी किसी को नहीं मिला है तो फिर उसे कैसे मिलेगा ।
सोसायटी या रिश्तेदारों के सामने हंसते मुस्कुराते रहती थी ,और उसकी वही हँसी आज की पार्टी में चर्चा का विषय था।
“आपलोगों ने धरा को नहीं बुलाया ?”
“हाँ बुलाया तो था ,पर अब उसके नाटक दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं, माना कि गगन अब नहीं रहे,परंतु इसका मतलब यह तो नहीं कि उसकी वज़ह से हमलोग भी मुस्कूराना छोड़ दें !”
“हम क्यों मुस्कूराना छोड़ें ? वह जब बन ठन कर घर से बाहर निकलती है तो शान तो देखो उसकी…..।
बातचीत को विराम लगा ; संध्या की माँ जी भरसक अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोलीं, “पार्टी करने आये हो पार्टी करो ना, बंद करो धरा की चर्चा ।कभी वह भी हरी भरी थी ,प्यार की बेड़ियों में वह अपने बच्चों को जकड़ना नहीं चाहती । अपने आँसुओं से अपने बच्चों का आज धोना नहीं चाहती ,क्योंकि उसे पता है कि दुख के पहाड़ उस पर टूटे हैंं , क्यों उस पहाड़ के बोझ तले सभी अपनों की मुस्कान दबा दे ? वैधव्य से पहले अनेकों बसंत उसकी बगिया को गुलज़ार करते रहे ।
“आप सबकी सोच बंजर हो चुकी है, नये पुष्प भले ही वह कैक्टस के हों पनपने ही नहीं देना चाहते हैं। हाँ सच ही तो कह रही हूँ ,कैक्टस के फूलों का रिहायशी इलाकों में क्या काम ,उसे तो रेगिस्तान में ही खिलना है , धरा भी तो कैक्टस की फूल है, काश काटों के बीच की मुस्कान को आप सभी समझ पाते ।”
“अभी तो धरा की दुनिया उज़ड़े साल भर भी नहीं हुए हैं,कुछ वक्त तो दीजिए आप सब उसे पुनः जीवंत होने के बदले क्यों उसे ठूँठ बनाने पर तुले हैं ?भूल रहे हैं कि अगर किसी पेड़ से कोई डाली कटती है तो आँसुओं की जलधारायें कटे पेड़ों के हिस्से पर भी बहने लगती हैं ।अच्छा होगा आप लोग किसी के बूरे वक्त के साथी बनें । वरना बंजर समाज के बंजर भूमि बनने में देर नहीं लगेगी ।”
— आरती राय