तुम्हें क्या पता
मुझे तो दर्द की ,थपकियों ने सुलाया
पर तुम्हें क्या पता? किस– किसने हैं रुलाया
यूॅ॑ ही आॅ॑खें झील सी न हुई
जिसमें तुम डूब जाना चाहते हो
गम हजारों दफन हैं उसमें
पर तुम्हें क्या पता?
डरती हूॅ॑ खुद ही, कहीं डूब न जाऊॅ॑
अपने अन्दर पल रहें, अज्ञात भय से
पर तुम्हें क्या पता?
समझती हूॅ॑ खुद को, समझाती हूॅ॑ खुद को
कई बार गिरती सम्हलती हूॅ॑ खुद ही
पर तुम्हें क्या पता
कभी दुआओं तो,कभी बद्दुआओं में हूॅ॑ पलती
दुनिया की नजरों में नमक– मिर्च सी लगती
पर तुम्हें क्या पता किस– किसने हैं रुलाया ।
— रेशमा त्रिपाठी