मतदाताओं का हंटर
पाँचों विधानसभा-चुनाव के मतदान-परिणाम प्रत्याशित ही थे। वैसे सत्ता पक्ष की ओर हवा कम ही बनती है, तथापि तेलंगाना और मिजोरम में स्थानीय पार्टियों का आना, खासकर तेलंगाना में राज्य के संस्थापक सेनानी और प्रथम -सह- कार्यवाहक मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव को पहला कार्यकाल के लिए मनोनुकूल कार्यावधि प्राप्त नहीं हो सकी थी, उन्हें यह चांस पुनः मिलना जरूरी था, मिज़ोरम में मिज़ो-संस्कृति निकटरूपेण हावी है । वहीं, शेष तीनों राज्यों में, यथा- मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में विपक्षी कांग्रेस ने छलांग लगाई है, राजस्थान का रिज़ल्ट ‘छत्तीसगढ़’ जैसा होना सोच में आ सकता था, किन्तु छत्तीसगढ़ से डॉक्टर साहब आउट हो जाएंगे, किसी ने सोचा नहीं था ! मध्यप्रदेश में कशमकश की खुशी ‘मामा’ ने दिया । परंतु यह स्थितियाँ भाजपा के लिए 2019 के लोकसभा-चुनाव पर फतह हेतु सही नहीं है । जोकि अतिशय मुश्किल होता दिख रहा है, तथापि यह कयास भर है, क्योंकि राजनीति में फ़िजा चंद क्षणों में बदल जाते हैं । भले ही राजस्थान और मध्यप्रदेश में त्रिशंकु की स्थिति हो गयी है, किन्तु यह स्थिति आगामी लोकसभा चुनाव में बिल्कुल साफ हो जाएगी, क्योंकि हमें यह नहीं भूलने चाहिए कि विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दे पर लड़े जाते हैं, तो लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दे को लेकर। यानी लोकसभा चुनाव बनाम देश की अखंडता ही सबसे प्रभावी स्लोगन हो सकता है!