सहानुभूति क्यों ?
नारी तो
‘माँ’ का अद्भुत रूप
होती है,
जिन्हें परिभाषित
नहीं की जा सकती !
‘बहन’ और ‘बेटी’ तो
पुरुष की सहयोगिनी हैं,
जो परिभाषित है,
किन्तु नारी का
एक अनन्य रूप
प्रेमिका और पत्नी की हैं,
जिसे न तो प्रेमी
और न ही पति
बूझ सका है आजतक !
क्या ‘नारी’
इस अनन्य रूप में
सचमुच में
अबूझ पहेली है
या यह कृत्य वह
जानबूझकर करती हैं,
कोई महिला मनोविश्लेषक ही
इसे व्याख्यायित
कर सकती हैं ?
क्योंकि कोई पुरुष
इसके विश्लेषणार्थ
असहाय है।
बावजूद,
हरकोई स्त्री के प्रति
सहानुभूति रखता है….