कविता

दर्जीगिरी बनाम ब्रांडेड

रेडीमेड और ब्रांडेड कपड़ों के

इस दौर ने

किस तरह

हमारे ट्रेडिशनल बुनकरों,

रंगदारों

और दर्जियों सहित

वस्त्र उद्योग से

जुड़े तमाम परिवारों को

मजूबर

और लाचार बना दिया है,

इसका एहसास होता है।

एक समय था जब

परिवार भर के कपड़े

कोई पारिवारिक दर्जी ही

सिलते थे,

जिसकी सिलाई,

बुनाई सब

एकदम पक्का

और टिकाऊ

काम लिए होता था

और तब कपड़े

लक्ज़री आइटम

नहीं होते थे,

कुछेक खास पर्वो में ही

परिवार भर के कपड़े बनते थे,

बाकी जिसका जन्मदिन हो

उसके लिए

अलग से

कुछ कपड़े आ जाते थे,

पर फिर भी

कपड़े सबके पास

पर्याप्त होते थे,

किन्तु रेडीमेड कपड़ों के

इस दौर ने

कपड़ो को भी

लक्ज़री आइटम

बना दिया है।

आज स्थिति यह है

कि अधिकांश लोग

लगभग हर महीने

या महीने में दो बार

कपड़े खरीदते ही हैं।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.