कविता

सहानुभूति क्यों ?

नारी तो

‘माँ’ का अद्भुत रूप

होती है,

जिन्हें परिभाषित

नहीं की जा सकती !

‘बहन’ और ‘बेटी’ तो

पुरुष की सहयोगिनी हैं,

जो परिभाषित है,

किन्तु नारी का

एक अनन्य रूप

प्रेमिका और पत्नी की हैं,

जिसे न तो प्रेमी

और न ही पति

बूझ सका है आजतक !

क्या ‘नारी’

इस अनन्य रूप में

सचमुच में

अबूझ पहेली है

या यह कृत्य वह

जानबूझकर करती हैं,

कोई महिला मनोविश्लेषक ही

इसे व्याख्यायित

कर सकती हैं ?

क्योंकि कोई पुरुष

इसके विश्लेषणार्थ

असहाय है।

बावजूद,

हरकोई स्त्री के प्रति

सहानुभूति रखता है….

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.