कविता

शिशिर ऋतु

ऋतुओं के ये मौसम कितने
अद्भुत सौन्दर्य लिए प्रकृति
को समर्पित हैं,।
कभी हेमन्त कभी वसंत
कभी वर्षा कभी शिशिर कहलाती हैं,,।।
आसमां मेघों से भरा है
पर्वत श्रृंखलाएँ बफ॔ से आछादित हैं,।
कुछ पत्ते शाख से गिरने लगे हैं
पेड़ पौधे वसंत की उमंग लिए हुए
धरा को प्रफुल्लित करने के लिए तत्पर हैं,,।।
ये ह्रदय भी कुछ इन ऋतुओं की तरह
चंचल मन लिए हुए है,
कभी प्रेम की आस तो कभी
बिछड़ने का गम लिए हुए है,,
हे!पतझड़ इस मन को भी
समझा ले कि पेड़ से
बिछड़ कर पत्तों का दद॔
कैसे सहन कर लेते हो!
कुछ इस ह्रदय की भी ऐसी ही दशा है।
ऋतुओं की तरह ही चलना पड़ता है
क्योंकि हर बार शिशिर की तरह ही
पतझड़ लिए हुए बिछुड़ना पड़ता है
कितना खूबसूरत है वसंत जो पेड़ो पर
नये शाख भर लेता है,।।
ये ह्रदय तो बहुत कुछ भरना चाहता हैं,।
पर पेड़ो की तरह कहाँ है मिट्टी का सहारा
ये तो ख्वाईशें लिए हुए उड़ना चाहता है,,।।
काश कि ये भी ऋतुओं की तरह होता
तो वसंत की तरह ही नयी उमंगो की
शाख लिए हुए शिशिर पतझड़ का फिर
आने का इन्तजार करता है,
प्रकृति की ये ऋतुएँ कितना
अद्भुत सौन्दर्य लिए प्रकृति को
ही समर्पित हैं।।

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)