मुझे पता था तू है मेरा
तुझसे साँसें चलती है।
इन दो नैनों के दीपों में
प्रणय वर्तिका जलती है।
सन्ध्या से ले भोर तलक मैं
पंथ निहारूँ तेरा ही ।
पारिजात के पुष्प झरें जब
नाम पुकारूँ तेरा ही।
नेह सीप का ,मोती पावन
स्वाति सुधा- सम झरती है।
इन दो नैनो के दीपों में
प्रणय वर्तिका जलती है।
महा काव्य सा प्रेम हमारा
मुक्तक -मुक्तक जीवन है।
प्राणों की बन्शी नित बजती
गीतों में गीतायन है।
प्रीत मिलन की सुधि मनभावन
विरह वेदना ढलती है।
इन दो नैनों के दीपों में
प्रणय वर्तिका जलती है।
माथे की बिंदिया -सम दिनकर
वातायन से मुसकाये ।
नयन विहाग भरे जब बेसुध
कुंतल ,किरणें छू जाये ।
प्रेम रंग से रँग दे दुनिया,
रात अँधेरी छलती है।
इन दो नैनों के दीपों में
प्रणय वर्तिका जलती है।
— रागिनी स्वर्णकार शर्मा