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सर्वश्रेष्ठ कर्मयोगी श्रीराम और शैक्षिक कर्मज्ञान

यह सच है, श्रीराम और उनकी वानरी सेनाओं ने बुराइयों के प्रतीकार्थ राक्षसों का संहार किए। वे भी एक मानव थे। पिता के निधन के बाद वे भी रोये थे। राजसत्ता के करीब आकर भी वे जंगल-जंगल भटके।

अवध के आम लोगों द्वारा यह कहा जाने पर कि सीता तो रावण से अपहृत हुई थी और उन्होंने तब गर्भवती पत्नी का परित्याग किये, बावजूद उनमें गुणों  का खान है और हमें श्रीराम के सद्गुणों को अवश्य ही अपनाना चाहिए। श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल नवमी में हुआ था।

चैत्र मास की शुक्ल तृतीया को मनाई जाने वाली ‘सरहुल’ पर्व आदिवासी समाज में वृहद् पैमाने में उल्लास और जनजातीय नृत्य के साथ मनायी जाती है। झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद बिहार में कटिहार, पूर्णिया, बांका और भागलपुर जिलों में खासकर संथाल, उराँव आदि जनजाति समुदाय के लोगों द्वारा यह त्यौहार न केवल उत्सव, अपितु सांस्कृतिक-गतिविधियों के साथ मनाया जाता है। सरहुल पर्व को ‘बाहा’ पूजा भी कहा जाता है।

यह एकतरह से प्रकृति की पूजा है । हमारे मनिहारी अनुमंडल में जमरा, नीमा, तेलडंगा, हरलाजोड़ी, ओलीपुर, सोहराडांगी, भेरियाही इत्यादि गाँवों में पुश्तैनी रूप से बसे संथाल और उराँव भाई एवं बहनों द्वारा पेड़-पौधों की टहनियों को एक जगह स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है, साथ ही पत्ते की छोटी-छोटी टहनियों को आदिवासी बहनों द्वारा गुँथी हुई बाल में खोंसकर तथा भाइयों द्वारा कमर में इन पत्तीयुक्त टहनियों को खोंसकर संताली भाषा में सामूहिक गान प्रस्तुत किए जाते हैं। इसप्रकार ‘सरहुल पर्व’ केवल उत्सव नहीं, अक्षुण्ण संस्कृति का नाम भी है।

संघर्ष में आदमी अकेला होता है, परंतु जब उन्हें सफलता मिलती है, तो पूरी दुनिया उनके साथ हो जाती है ! मेरा परिवार गत वर्ष से लेकर अबतक कोरोनकाल में साढ़े तीन लाख मास्क मुफ्त वितरण कर चुके हैं, जिनमें मेरे छोटे भाई ने सिलाई मशीन से सीकर सवा दो लाख मास्क अकेले ही वितरण किए हैं।

उनके पुस्तकीय रॉयल्टी सहित शिक्षकीय वेतन, माता-पिता के संचित आय से न सिर्फ मास्क, अपितु कई हजार साबुन और सैनिटाइजर आदि भी मुफ्त वितरण किये हैं। ऐसे कार्यों को लेकर भी लोगों गहरी रुचि दिखाने ही होंगे। कम आमदनी वाले लोग जब ऐसे पुनीत कार्य में आगे बढ़ कर दिलचस्पी ले रहे हैं, तो गाँव-समाज के धनी लोगों को भी निःस्वार्थ आगे बढ़ने होंगे। सिर्फ एनजीओ ही क्यों आगे बढ़ेंगे?

माता सीता जैसी गुण लिए आधुनिक भारत की प्रथम शिक्षिका सावित्री बाई फुले थी। मूलत:, शिक्षक ‘आरम्भिक ज्ञान’ देनेवाले होते हैं । महान समाज सुधारक जोतिबाफुले यानी ज्योति राव फुले भारत के ऐसे प्रथम सुधारक थे, जिन्होंने पिछड़ों और अनुसूचित जातियों को शिक्षा की ओर उन्मुख किए। महाराष्ट्र में माली यानी मालाकार जाति में जन्म लिए ज्योतिबा के जीवन और शैक्षिक कार्यों से प्रेरणा पाकर ही श्रीमान भीमराव रामजी सकपाल आंबेडकर ने उच्च शिक्षा प्राप्त किये। माननीय फुले की अर्द्धांगिनी सावित्री बाई भारत की प्रथम आधुनिक शिक्षिका थी।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.