महर्षि मेंहीं : व्यक्तित्व और कृतित्व
2021 के 25 मई यानी वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को महर्षि मेंहीं परमहंस की 137वीं जन्म-जयंती है। बिहार के मधेपुरा जिले में जन्म, पूर्णिया जिला स्कूल में पढ़ाई, कटिहार जिला के नवाबगंज, मनिहारी को कर्मभूमि बनाये, तो कुप्पाघाट, भागलपुर में ज्ञानप्राप्त करने वाले संत महर्षि मेंहीं को महात्मा बुद्ध का अवतार भी माना जाता है। वैशाख पूर्णिमा को महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था और ठीक एक दिन पहले यानी वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को महर्षि मेंहीं का अवतरण उनके 20वीं सदी में अवतार के प्रसंगश: तो है ही !
दोनों संत-महात्मा में कई विशेषताएं समय थी। सौ साल की उम्र पाकर 1986 में महर्षि मेंहीं महापरिनिर्वाण को प्राप्त किये । संत मेंहीं की उल्लेखनीय आध्यात्मिक-पुस्तकों में ‘सत्संग-योग’ की चर्चा चहुँओर है, यह चार भागों में है । महात्मा बुद्ध की रचना ‘धम्मपद’ की भाँति ‘सत्संग योग’ का भी बड़े नाम हैं। संत मेंहीं प्रणीत अन्य ग्रंथों में विनय पत्रिका सार सटीक, महर्षि मेंहीं वचनामृत, सत्संग सुधा, प्रथम भाग, द्वितीय भाग, तृतीय भाग और चतुर्थ भाग, भावार्थ सहित घटरामायण पदावली, वेद दर्शन योग, ईश्वर का स्वरूप और उसकी प्राप्ति, ज्ञान योगयुक्त ईश्वर भक्ति, संतवाणी सटीक, श्रीगीता योग प्रकाश, रामचरितमानस सार सटीक, मोक्ष दर्शन, महर्षि मेंहीं पदावली, महर्षि मेंहीं सत्संग सुधा सागर इत्यादि हैं।
20 वीं सदी के संत महर्षि मेंहीं की चर्चा महात्मा गांधी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, संत विनोबा भावे, आचार्य शिवपूजन सहाय, मदर टेरेसा, डॉ. रामधारी सिंह दिनकर इत्यादि सहित पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी किए है। ऐसे इस महान संत की जन्म-जयंती पर बिहार के मात्र 5-6 जिले के सत्संग प्रेमी ही इन्हें याद करते हैं । इनकी महत्ता को हमारे युवा पीढ़ी जान सके, इसके लिए बिहार सरकार को इनके बारे में पाठ्य पुस्तकों में चर्चा करनी चाहिए, ताकि महान पुरुष की महत्ता से युवा पीढ़ी अनभिज्ञ न रह सके !
तभी तो- कोई भी ‘संत’ स्थान, धर्म और काल विशेष से परे होते हैं, बावजूद बिहार, झारखंड आदि राज्यों व नेपाल, जापान आदि देशों में लोकप्रिय संत महर्षि मेंहीं और उनके आध्यात्मिक-प्रवचन से भारत के राष्ट्रपति डॉ. शर्मा, प्रधानमन्त्री श्री वाजपेयी सहित कई राज्यो के राज्यपाल, मुख्यमंत्री , नेपाल के महाराजा सहित अनेक व्यक्ति प्रभावित हुए हैं । संत टेरेसा और बिनोवा भावे उनसे खासे प्रभावित थे । ‘सत्संग-योग’ पुस्तक उनकी अनुकरणीय कृति है।
जिसतरह से भगवान बुद्ध के लिए बौद्धगया महत्वपूर्ण रहा है, उसी भाँति महर्षि मेंहीं के लिए कुप्पाघाट, भागलपुर महत्वपूर्ण स्थल है । प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु इस स्थल के दर्शन करने आते हैं । मैंने विगत सितम्बर में इस संत को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ प्रदानार्थ आधिकारिक ‘प्रार्थना-पत्र’ गृह मंत्रालय, भारत सरकार को भेजा है। इस समाचार पत्र के माध्यम से पाठकों से अपील है, वे सब इस मुहिम को मंजिल तक पहुँचाए।
उत्तर भारत सहित नेपाल, भूटान आदि देशों तक प्रसारित संतमत परम्परा के प्रख्यात संत महर्षि मेंहीं के पितृ घर सिकलीगढ़ धरहरा, जो पूर्णिया जिला में है और जन्मभूमि यानी ननिहाल खोखसीश्याम, जो मधेपुरा जिला में है, किंतु उनकी कर्मभूमि कटिहार जिले के नवाबगंज और मनिहारी रही । नवाबगंज में संतमत सत्संग मंदिर 1930-31 में स्थापित हुई थी, तो मनिहारी में सत्संग मंदिर 1936 में बनी है, अपितु महर्षि मेंहीं के मुख्य निवास नवाबगंज मन्दिर रहा । मनिहारी कुटी में तो गंगा स्नानादि के तत्वश: जाते रहे । महर्षि मेंहीं का जन्मोत्सव 1945 में पहलीबार नवाबगंज सत्संग मंदिर में ही मनी थी।
महर्षि मेंहीं के अनन्य शिष्यों में महर्षि संतसेवी, स्वामी शाहीजी, आचार्य हरिनंदन, स्व. योगेश्वर प्रसाद ‘सत्संगी’ जी इत्यादि हैं, जिनमें योगेश्वर जी जन्मजात शाकाहारी, आदर्श कर्मयोगी और 1942 अगस्त क्रान्ति के अमरसेनानी थे। ध्यान और योग के अध्येता सहित जीवनपर्यंत सन्तमत सत्संग और बिहार, झारखंड, नेपाल के लोगों के अन्तेवासी संत महर्षि मेंहीं के विचारों और शाकाहार के वरेण्य प्रचारक रहे। जन्म बंगाल के पुरैनिया जिला, वर्तमान में बिहार के कटिहार जिला के मनिहारी प्रखंडान्तर्गत ऐतिहासिक ग्राम नवाबगंज में बाबा देवी साहब के शिष्य व विद्वान पिता मधुसूदन पॉल पटवारी और विदूषी माता गर्भी देवी के यहाँ 29 फ़रवरी 1908 को हुआ। तीन बहनों पर प्यारा भाई तथा स्नातक उत्तीर्ण पटवारी पिता के दुलरवा बेटा जहाँ विलासप्रिय होना चाहिए, किन्तु वहाँ उनका झुकाव सन्तमत सत्संग की ओर था, चूँकि उनदिनों पिता मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश के बाबा देवी साहब के अनन्य शिष्य थे, इन शिष्यों में रामानुग्रह लाल, जो बाद में महान संत महर्षि मेंहीं के नाम से जाने गए, उनके पिता के पुरैनिया स्कूल में वर्गमित्र रहे थे, भी देवी साहब के शिष्य थे।
महर्षिजी ने नवाबगंज मनिहारी को कर्मभूमि भी बनाये। दोनों शिष्य यहां ट्यूशन भी पढ़ाये। बालक लखन लाल भी इनसे पढ़े तथा अध्यात्म की और आकृष्ट होते चले गए. ध्यान और योग करने से योगी पुकारे गए। लखन लाल नाम गौण होकर स्कूली नाम योगेश्वर प्रसाद पॉल हो गया। पिता सन्तमत सिद्धांत के संयुक्त लेखक थे, इसी सिद्धांत को लेकर महर्षिजी अन्तत: कुप्पाघाट भागलपुर में स्थापित हो सन्तमत का प्रकाश फैलाये। प्रवेशिका अध्ययन के क्रम में पिता के असामयिक निधन पर 6 भाई बहनों में 3 भाइयों के ये परिवार टूट से गए, क्योंकि बहनों की शादी हो गई थी, तब महर्षि मेंहीं ने दीक्षा देकर सम्बल प्रदान किये और वक्तान्तर में शूजापुर के पूर्वपरिचित बीरबल पंडित की पुत्री मैनी से योगेश्वर का विवाह कराने में महती भूमिका निभाये। बाल्यावस्था के दुलरवा नून तेल लकड़ी में आबद्ध होकर माटी पेशा अपनाये, तब भी नेपाल तक योग और ध्यान का प्रचार करते रहे।
इसी बीच महात्मा गाँधी के संपर्क में आये और कालान्तर में अगस्त 1942 में उनके करो या मरो आह्वान पर भारतीय आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। संतलाल, नागेश्वर, गोपीपाल, हामिद अंसारी, मंगल, दिल्लू गंगोता, मोहन, पूरण इत्यादि मित्रों के साथ मिलकर अँग्रेजों को गुरिल्ला टाइप से परेशान किये, आजादी मिलने के कुछ वर्ष बाद तक कुल 5 बार जेल गए। स्वतंत्रता सेनानी कहाने के लिए भी लंबी लड़ाई लड़े, बावज़ूद ताम्रपत्र हासिल नहीं हुआ, किन्तु कुछ माह पेंशन मिला, बाद में भारत सरकार द्वारा इसे भी रोक दिया गया। आजादी के 50 साल पूर्ण होने पर पूर्व मा. सांसद शशिभूषण ने इनकी जीवनी को 1942 क्रान्ति सेनानी में शामिल करने को लेकर इनके पौत्र को पत्र भेजा। आजादी के कई वर्षों बाद इनका जुड़ाव संत बिनोवा भावे से भी रहा। नवाबगंज में इनके द्वारा संत भावे को 108 स्वनिर्मित नक्काशीदार सुराही सप्रेम भेंट किया जाने पर इनकी सेवा को उनके द्वारा अनोखा कहा गया। कई माह की बीमारी के बाद 18 जनवरी 2006 को इस महापुरुष का देहावसान हो गया।
योगेश्वर जी के गुरु महर्षि मेंहीं का जन्म बिहार के मधेपुरा जिले में, पूर्णिया जिला स्कूल में पढ़ाई, कटिहार जिला (नवाबगंज, मनिहारी) कर्मभूमि, कुप्पाघाट (भागलपुर) में ज्ञान-प्राप्ति वाले संत (महर्षि मेंहीं) को महात्मा बुद्ध के अवतार माने जाते हैं । सौ साल पाकर 1986 को महापरिनिर्वाण पाये। इनकी उल्लेखनीय आध्यात्मिक-पुस्तकों में ‘सत्संग-योग’ की चर्चा चहुँओर है, यह चार भागों में है । इसे भौतिकवादी व्यक्तियों को भी पढ़ना चाहिए । मैंने भी चौथे भाग की समीक्षा किया है। ऐसे संतशिरोमणि के बारे में देश-विदेश के कई विद्वानों ने चर्चा किये हैं, यथा:-
1. श्री मेंहीं जी संतमत के वरिष्ठ साधक हैं– महात्मा गांधी ।
2. महर्षि मेंहीं शान्ति की स्वयं परिभाषा है– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ।
3. पूज्य मेंहीं दास जी एक आदर्श संत हैं– डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ।
4. महर्षि मेंहीं परमहंस जी विलक्षण संत होते हुए भी एक प्रसिद्ध साहित्यकार हैं– आचार्य शिवपूजन सहाय।
5. श्री मेंहीं जी के ध्यान-योग-विशेषता सचमुच में महान है– संत विनोबा भावे ।
6. बुद्ध, आचार्य शंकर, ईसा, मुहम्मद, नानक, रामानंद, कबीर, चैतन्य, महावीर जैन, महर्षि देवेन्द्र नाथ ठाकुर, सूर, तुलसी, रामकृष्ण परमहंस, समर्थ रामदास प्रभृति परामसंतों की परम्परा के श्रेष्ठ लोकसेवी तो हमारे पूज्य महर्षि मेंहीं परमहंस जी हैं– गुलजारी लाल नंदा ।
7. मैं पूज्यपाद महर्षि मेंहीं जी के साथ मात्र दो-तीन दिन ही रहा । मुझे ऐसा मालूम हो रहा है की मैं साक्षात् बुद्ध भगवान का ही दर्शन कर रहा हूँ– बौद्ध भिक्षु जगदीश काश्यप ।
8.पूज्य गुरु महाराज महर्षि मेंहीं सम्पूर्ण विश्व-संस्कृति के ध्रुवतारा हैं– डी. हॉर्वर्ड (अमेरिका) ।
9. महर्षि मेंहीं जी के साहित्य की आध्यात्मिक विशेषता यह है कि व स्वयं संत होकर संत साहित्य के सम्बन्ध में अपना आचार-विचार प्रकट किये हैं– राहुल सांकृत्यायन।
10. महर्षि मेंहीं श्रद्धेय एवम् आराध्येय हैं– मदर टेरेसा ।
11. स्वप्न में मुझे जिस महात्मा की छवि आई, आखिर उसे मैंने पा ही ली और पूज्य महर्षि मेंहीं को अपना सद्गुरु मान बैठी– युकिको फ्यूजिता (जापान) ।
12. मैं महर्षि मेंहीं को हृदय से गुरु मान चुका हूँ– नागेन्द्र प्रसाद रिजाल (नेपाल के पूर्व प्रधानमन्त्री )।
13. मैंने महर्षि जी के साहित्य को बड़ी चाव से पढ़ी है, सचमुच में महर्षि मेंहीं परमसंत हैं– इंदिरा गांधी।
14. महर्षि मेंहीं हमारे राष्ट्र के ध्रुवतारा थे– डॉ. शंकर दयाल शर्मा।
15. महर्षि मेंहीं बिहार के गौरव थे– बच्छेन्द्री पाल।
16. जिस मेंहीं का मुझे खोज था, वो मुझे मिल गया– बाबा देवी साहेब।
17. परम संत महर्षि मेंहीं परमहँस जी महाराज को सादर नमन– अटल बिहारी वाजपेयी।
18. महर्षि मेंहीं बहुत पहुंचे हुए महात्मा हैं– भागवत झा आज़ाद।
19. श्रद्धेय मेंहीं बाबा अध्यात्म की बहुत बड़ी सेवा कर रहे हैं– वी. पी. सिंह।
20.. संतमत-सत्संग और महर्षि मेंहीं से मुझे बहुत प्रेम है– जे.आर.डी. टाटा।
21. मेरे सात प्रश्नों को पूछे बिना ही महर्षि जी ने सटीक उत्तर दिए, महर्षि मेंहीं बहुत बड़े महात्मा हैं– रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
22. जिसतरह चंद्र और सूर्य विश्वकल्याण के लिए उदित होते हैं, उसी प्रकार संतों का उदय जगन्मंगल के लिए हुआ करता है । हमारे पूज्य गुरुदेव महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कितने ऊँचे थे ? उनकी तपस्या कितनी ऊँची थी ? वे कितने महान थे ? उनका बखान हम साधारणजन नहीं कर सकते हैं– महर्षि संतसेवी।
23. हमारे सदगुरुदेव महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की छवि सबसे अलग और महान है— शाही स्वामी महाराज।
24. संत और भगवंत के संयुक्त रूप महर्षि मेंहीं हैं– शत्रुघ्न सिन्हा।
25. सन्तमत के महान प्रवर्तक गुरु महाराज महर्षि मेंहीं का भारत भूमि पर अवतीर्ण होना हमलोगों का सौभाग्य है– डॉ. रामजी सिंह ।
26. आज भारत के बिहार भूमि पर भगवन् के रूप में परमपूज्य महर्षि मेंहीं जी महाराज ज्ञान प्रदान कर रहे हैं, यह भारत का गौरव है– डॉ. माहेश्वरी सिंह ‘महेश’।
27. महर्षि मेंहीं को शत्-शत् नमन्– गोविन्द वल्लभ आहूजा ‘गोविन्दा’।
28. महर्षि मेंहीं लोक-परलोक उपकारार्थ जन्म लिये– न्यायमूर्ति मेदिनी प्रसाद सिंह।
29. सन्तमत हमारा धर्म है और महर्षि मेंहीं हमारे पूज्य गुरु महाराज हैं– दारोगा प्रसाद राय।
30. अपना देश ऋषि-मुनियों का देश है, इस ऋषि-मुनियों की उत्कृष्ट परंपरा में महर्षि मेंहीं एक प्रमुख संत थे– लालू प्रसाद ।
31. पूर्णियाँ की गोद में खेले महान साहित्यकारों, स्वतंत्रता-सेनानियों के साथ संतों में से प्रख्यात संत महर्षि मेंहीं भी खेल चुके हैं– फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ ।
32. हमारे पूज्य गुरु महाराज महर्षि मेंहीं एक महान व्यक्ति थे– दल बहादुर बाबा (नेपाल)।
33. मेरा जब-जब महर्षि मेंहीं जी से साक्षात्कार हुआ है, मैं उनके पुनीत एवम् लोकोत्तर व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा– डॉ. धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी शास्त्री।
34. शांतिदूत महर्षि मेंहीं बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे– डॉ. यशपाल जैन।
35. मैं स्वामी दयानंद और महावीर स्वामी से अत्यधिक प्रभावित था, परंतु परमात्मा के तुरीयातीत स्वरुप का बौद्धिक निर्णय और उनकी प्राप्ति की युक्तियुक्त साधना-विधि तो महर्षि मेंहीं जी चरणों में ही बैठकर प्राप्त की — जैन आचार्य श्री ताले जी।
36. मेरा अहोभाग्य है कि मैं महर्षि मेंहीं जैसे सद्गुरु के संपर्क में आया– विष्णुकांत शास्त्री।
37. महर्षि मेंहीं विश्व कल्याण हेतु जन्म लिये– आचार्य परशुराम चतुर्वेदी।
38. हमारी पत्रिका ‘अवंतिका’ के द्वारा महर्षि मेंहीं जी के हिंदी (भारती) भाषा संबंधी विचार को सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रतिष्ठित विद्वतगण ने सराहा है– डॉ. लक्ष्मी नारायण ‘सुधांशु’।
39. महर्षि मेंहीं जी एक दिव्य पुरुष हैं– डॉ. सम्पूर्णानंद।
40. चीन-भारत युद्ध में गुरुदेव महर्षि मेंहीं के ध्यानयोग की अहम् भूमिका ने बिहारी सैनिकों को अंदर से मजबूत किया– डॉ. (मेजर) उपेन्द्र नारायण मंडल।
41. संत मेंहीं 20वीं सदी के भगवान बुद्ध थे– माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी।
42. संत मेंहीं महान संत थे– डॉ. महेश्वर प्रसाद सिंह।
43. मेरे पिता प्रातःस्मरणीय मधुसूदन पॉल पटवारी ‘महर्षि मेंहीं’ के गुरु भाई रहे हैं– योगेश्वर प्रसाद ‘सत्संगी’।
44. भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना दिव्य-रूप दिखाते समय कहा था- मैं ही सबकुछ हूँ । वही मैं ही ‘मेंहीं’ है– डॉ. सदानंद पॉल।
45. डॉ. माहेश्वरी सिंह ‘महेश’ और डॉ. नागेश्वर चौधरी ‘नागेश’ ने परमसंत महर्षि मेंहीं पर शोध-प्रबंध लिखकर बड़े पुण्य कार्य किये हैं– भूचाल पत्रिका।
46. महर्षि मेंहीं विश्व के उद्भट विद्वान संत थे– भागीरथी पत्रिका।
47.महर्षि मेंहीं जन-जीवन में चिर स्मरणीय नाम है– शांति-सन्देश पत्रिका।
48. महर्षि मेंहीं महान लोक शिक्षक थे– आदर्श-सन्देश पत्रिका।
49. संतमत-सत्संग के संस्थापक-प्रचारक व ‘सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी’ के अमर गायक महर्षि मेंहीं बीसवीं सदी के बुद्ध थे– साप्ताहिक आमख्याल।
50. कहते हैं, द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की भटकती आत्मा का उद्धार महर्षि मेंहीं आश्रम, कुप्पाघाट में ही हो पायी– दैनिक हिन्दुस्तान।
51. महान संत महर्षि मेंहीं को सादर स्मरण– दैनिक जागरण।
52. महर्षि मेंहीं के उदात्त चेतना को चिर नमन्– दैनिक आज।
अस्तु, वर्णित तथ्यों के मद्देनजर एक भारतीय नागरिक होने के नाते भारत सरकार से यह आग्रह है कि संतमत सत्संग परम्परा के उद्भट संत और अमर कृतिकार महर्षि मेंहीं परमहंस को मरणोपरांत ‘भारतरत्न’ के लिए अलंकृत की जाय !