गजल
हर खुशी मिलती है जाँ तेरी खुशी में।
तुम बिना पलको की भूमि है नमी में।
दिन- रात सदियों से मुझे लग रहे है।
जान जाती है हर लम्हा तेरी कमी में।
ये गीत, गजलें शायरी जो भी है मेरी।
तेरी उगाई फसलें है दिल की जमी में।
भूल बैठा खुद को मैं तुझको पाकर।
तुझ सा नशा पाया नहीं मयकशी में।
संग राधा कृष्ण गौरी शिव सा होगा।
अरमान सारे मिल गये मेरे जमी में।
मैं तुम्हारे साथ, चाय पीना चाहता हूँ।
बस एक कप और हम दोनों उसी में।
मिल नहीं पाये तो हुआ क्या ऋषभ?
सात जन्मों में से मिलेंगे जाँ किसी में।
— ऋषभ तोमर ‘राज’