लघुकथा

दशहरा

बचपन रावण को जलता हुआ देखने हम घर से मीलों दूर चौक वाले मैदान जाते थे।अच्छा दादा जी। आप भी जाते थे सोनू ने पूछा। हां सोनू मैं भी जाता था। छोटे में पिता जी के साथ । जैसे मैं जाता हूं। हां सोनू बिल्कुल ऐसे ही।चाट पकोड़े के ढेले लगते थे।हम खूब खाते थे। लेकिन दादा जी रामू तो कह रहा था कि रावण तो जिंदा है। कहां है जिंदा।अरे दादा जी जब आपको अभिमान आता है। ना बही तो रावण है। कहीं और कहां जाना। हम कहते हैं ना मैं ही सबकुछ हूं। उस में रावण है। मैं को हम क्यो नही करते हैं दादा जी बताओं न दादा जी

उस दिन दादी जी को अपने अंदर रावण होने का एहसास हो रहा था। जो कह रहा था। मैं ज्ञाता हूं। अब इसके मारने कौन से श्रीराम को बुलाऊं। दादा जी सोच में पड़ गये

 

अभिषेक जैन

माता का नाम. श्रीमति समता जैन पिता का नाम.राजेश जैन शिक्षा. बीए फाइनल व्यवसाय. दुकानदार पथारिया, दमोह, मध्यप्रदेश