माँ अब मुझ को काजल नही लगाती है।
शायद माँ को मेरी अब चिंता नही सताती है।
इसलिए माँ अब मुझ को काजल नही लगाती है।
बचपन में बुरी नजर का काला टीका लगाती थी।
बीमार पड़ जाने पर कितनी तरह से नजर उतारती थी।
आज अकेले में भी मेरे पास नही आती है।
शायद अब माँ को मेरी चिंता नही सताती है।
माँ अब मुझ को काजल नही लगाती है।
दीवार पर माला डली तस्वीर में से,
मेरे टपकते आँसुओ को देख कर।
माँ जैसे कह रही हो चुप हो जा अब
तेरे बहते आँसूओ को पोछने कोई नही आयेगा।
तेरे दिल की बातों को सुनने कोई नही आयेगा।
बड़ी हो गयी है अब तू,अपनी जिम्मेदारी निभाने को।
घर और बाहर वालों के तानों को भूल जाने को।
रात को दूध पिया की नही पूछने अब कोई नही आयेगा।
दर्द हो कितना भी ,माथा अब कोई नही दबायेगा।।
त्यौहारो की चमक रुँध गयी अब सन्नाटों में।
माँ के हाथ की पूरी और लडुआ खिलाने कोई नही आयेगा।
बड़ी हो गयी छोटी सी बिटिया
इसलिए अब वो मुझ को नही बुलाती।
शायद अब मेरी माँ को मेरी चिंता नही सताती है।
माँ अब मुझ को काजल नही लगाती है।।
संध्या चतुर्वेदी
मथुरा,उप