याद करें उन वीरों को
आओ शीश झुकाएं मिलकर
हम याद करें उन वीरों को
आ न सके जो घर लौट कर
उन शूरवीर असली हीरों को
शीश नवाकर माता पिता को
निकल पड़े थे घर से सीना ताने
पीठ मत दिखलाना रण में
यह बात कही थी माँ ने
छोड़ गए सब अपने पराये
वापिस आ न सके माँ हम
बेटी से गुड़िया का वायदा
जीते जी निभा न सके माँ हम
बापू के बुढ़ापे की लाठी
बनना था जिसे वह टूट गई
मुझसे जो उम्मीदें थी सबकी
कुदरत हमसे वह लूट गई
चलती बार मिली थी वो
आंखों में बिछुड़ने का गम है
एहसास मुझे भी हैं मेरी माँ
आज आंख सभी की क्यों नम हैं
रोना नहीं है आज समय है
दिल पर काबू पाने का
अच्छा मां अब समय हो गया
अंत समय अब जाने का
मातृभूमि की रक्षा करते
जो कर देते अपने प्राण कुर्बान
लाखों दिलों में बसते हैं वो
होते हैं वो देश की शान
— रवींद्र कुमार शर्मा